गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

= गुरुदेव का अंग =(१/६४-६)

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॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
"श्री दादू अनुभव वाणी" टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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= श्री गुरुदेव का अँग १ =
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घट - घट राम रतन है, दादू लखे न कोइ ।
सद्गुरु शब्दों पाइये, सहजैं ही गम होइ ॥६४॥
प्रत्येक व्यक्ति के अन्त:करण में राम रूप रत्न स्थित है किन्तु गुरु - ज्ञान बिना कोई भी अज्ञानी उसे नहीं देख सकता । सद्गुरु शब्दों के ज्ञान द्वारा उस राम के स्वरूप में सहज ही गति होकर जिज्ञासु जन राम को प्राप्त कर लेते हैं ।
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जब ही कर दीपक दिया, तब सब सूझन लाग ।
यूँ दादू गुरु ज्ञान तैं, राम कहत जन जाग ॥६५॥
सद्गुरु ने जिस क्षण अन्त:करण रूप हाथ में आत्मज्ञान दीपक दिया था तब सब विश्व में राम ही राम दीखने लगे था । इस प्रकार गुरु - ज्ञान द्वारा अज्ञान - निद्रा से जागकर साधक अपने सहित सब विश्व को राम रूप ही कहने लगता है ।
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आत्मार्थी भेष
दादू मन माला तहं फेरिये, जहं दिवस न परसे रात ।
तहां गुरु बानां दिया, सहजैं जपियें तात ॥६६॥
६६ - ७४ में आत्म - प्राप्ति का हेतु जो भेष है उसका परिचय दे रहे हैं - किसी ने प्रश्न किया था - आपके मालादि भेष नहीं दीखता, आप माला कहां बैठकर फेरते हैं ? उत्तर - हमारा मन ही हमारी माला है और जहां सूर्य स्वर - दिन, चन्द्र स्वर - रात्रि नहीं रहती उस सुषुम्ना नाड़ी पथ में स्थित होकर अजपा - जाप जपते हैं । हमारे गुरु ने वहां ही जाप करने की दीक्षा तथा भेष दिया है । हे तात ! तुम भी उस सहजा अवस्था में स्थित होकर ही अजपा - जाप जपो ।
(क्रमशः)

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