मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

= ज्ञानसमुद्र(द्वि. उ. ७-१०) =

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स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान, अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महंत महमंडलेश्वर संत १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ द्वितीय उल्लास =*
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*- सोरठा -* 
*इमि नव अंगनि जांनि, सहित अनुक्रम कीजिये ।* 
*सब ही कौं सुख दांनि, भक्ति कनिष्टा यह कही ॥७॥* 
इस तरह इसके ९ अंगों को अनुक्रमसहित जान लो । यह सभी जिज्ञासुओं को सुख देने वाली है । विद्वान लोग इस नवधा भक्ति को कनिष्ठा भक्ति कहते हैं ॥७॥ 
*- शिष्य उवाच - मालती -* 
*श्रवन प्रभु कौंन सो कहिये । कीरतन कौंन बिधि लाहिजे ॥* 
*जु सुमरन कौंन कहि दीजै । चरन सेवा सु क्यों कीजै ॥८॥* 
शिष्य फिर प्रश्न करता है - प्रभो ! श्रवणभक्ति कौन सी है ? कीर्तनभक्ति कैसे प्राप्त की जाती है ? और यह भी बताइये कि स्मरणभक्ति कौन-सी है ? चरणसेवन भक्ति क्यों करनी चाहिये ? ॥८॥ 
*अर्चना कौंन विधि होई । वंदना कहौ गुरु सोई ।* 
*दास्य सख्यत्व पहिचानौ । निवेदन आतमा जानौ ॥९॥*
अर्चना भक्ति का अभ्यास कैसे करना चाहिये ? वह वन्दनाभक्ति क्या है जिसका पहले आप नाम ले चुके हैं ? ऐसा कुछ उपदेश कीजिये कि मैं दास्यभक्ति और सख्यत्व भक्ति को भी भलीभाँति समझ लूँ, और आत्म निवेदन भक्ति के विषय में भी सब कुछ जान लूँ ॥९॥ 
*- सोरठा -*
*येक येक कौ भेव, मोहि अनुक्रम सों कहौ ।* 
*तुम कृपाल गुरुदेव, पूछत विलग न माँनिये ॥१०॥* 
हे गुरुदेव ! इन भक्तियों में विस्तारपूर्वक एक एक का क्रमशःउपदेश कीजिये । मेरे बार बार प्रश्न करने से मन में बुरा न मानें, क्योंकि आप शिष्यों पर दयाभाव रखने वाले हैं ॥१०॥
(क्रमशः)

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