मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016

= विन्दु (२)६७ =

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-२)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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उस तुर्क को अब नम्रता युक्त देखकर परम दयालु दादूजी ने इस पद से उपदेश दिया -
"बाबा मर्द मर्दां१, ये दिल पाक२ करदम३ धोई॥टेक॥
तर्क४ दुनियां दूर कर दिल, फर्ज५ फारिग६ होई ।
पैवस्त७ परवरदिगार८ सौं, आकिलां९ सर१० सोइ॥१॥
मनी११ मुरदः१२ हिर्स१३ फानी१४, नफ्स१५ रा१६ पामाल१७ ।
बदीरा१८ बरतरफ१९ करदः२०, नाम२१ नेकी ख्याल२२॥२॥
जिंदगानी२३ मुरदः बाशद२४, कुजे२५ कादिर२६ कार२७ ।
तालिबां२८ रा हक़२९ हासिल३०, पासबाने३१ यार॥३॥
मर्दे मर्दां सालिकां३२ सर३३, आशिकां३४ सुलतान३५ ।
हजूरी होशियार दादू, इहै गो३६ मैदान॥४॥
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हे बाबा ! मर्दों में मर्द उसी को कहना१ चाहिये, जिसने पाप रूप कीचड़३ धोकर अपना ह्रदय पवित्र२ कर लिया है ।
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सांसारिक बातों को त्याग४ कर अपने मन को संसार से दूर कर लिया है तथा अपने कर्तव्य५ कर्म को करके निश्चिन्त६ हो विश्व८ पालक परमात्मा से, मिला७ रहता है, वही बुद्धिमानों९ में शिरोमणि है वा यही बुद्धिमानों९ का रहस्यमय१० सिद्धांत है ।
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अहंकार११ को मार१२ कर नश्वर१४ पदार्थों की तृष्णा१३ और विषय१५ वासना को१६ नष्ट१७ कर बुराई१८ को दूर१९ कर२०, इज्जत२१ तथा भलाई का विचार२२ रख ।
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जीवितावस्था२३ में ही मृतक समान निर्द्वन्द्व हो । कुछ२४ भी परवाह न रखकर, समर्थ२६ प्रभु की प्राप्ति रूप काम२७ के लिये संसार के किनारे२५ बैठ । ऐसा करने से ही जिज्ञासुओं२८ को सत्य२९ रूप फल३० प्राप्त होता है और सच्चामित्र परमात्मा रक्षक३१ होता है ।
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मर्दों में मर्द सन्त यात्री३२ हैं । वे ही ईश्वर प्रेमी३४ साधकों के सरदार३३ और बादशाह३५ हैं । प्रभु के निकटवर्ती रहने में ही वे सावधान रहते हैं । इन्द्रियों३६ को जीतने का युद्ध क्षेत्र यही(मनुष्य) शरीर है । अतः इन्द्रियों को जीतकर प्रभु के पास जाना चाहिये । प्रभु प्राप्त होने पर ही मनुष्य शरीर सफल होता है ।
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उक्त प्रकार उपदेश करके उस तुर्क में दादूजी ने निर्गुण ब्रह्म भक्ति उत्पन्न करदी । उसने भी अपनी मनोवृत्ति को रोम रोम में रमने वाले निरंजन राम में लगा दी । उस तुर्क पर महापुरुष दादूजी महाराज की ऐसी छाया पड़ी कि वह परिजन, धन, धाम आदि सम्पूर्ण माया को त्यागकर फकीर बन गया और निरंतर निरंजन राम का ही भजन करने लगा ।
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फिर कुछ दिन बाद दादूजी का सत्संग करते करते मृत्यु को प्राप्त हो गया । तब दादूजी ने उसके शरीर को पर्वत में रखने की आज्ञा दी और शव को पर्वत में रख दिया तब पशु पक्षी खा गये । इसकी सूचना प्रतिपक्षियों ने राजा मानसिंह को देकर बहकाया था ।
(क्रमशः)

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