मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016

= गुरुदेव का अंग =(१/६१-३)

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॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
"श्री दादू अनुभव वाणी" टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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= श्री गुरुदेव का अँग १ =
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दादू कद यहु आपा जाइगा, कद यहु बिसरे और ।
कद यहु सूक्षम होयगा, कद यहु पावे ठौर ॥६१॥
यह देहादि का अहँकार कब जायगा ? यह मन आत्मा से भिन्न अनात्मा पदार्थों की आसक्ति कब त्यागेगा ? यह जीवात्मा जीवत्व भाव रूप स्थूलता को त्याग कर कब सूक्ष्म होगा ? यह आत्मा कब ब्रह्म रूप धाम को प्राप्त करेगा ? उत्तर - जब गुरु द्वारा ज्ञान होगा तब आपा, अनात्मा की आसक्ति, जीवत्व भाव चले जायेंगे और ब्रह्म को प्राप्त हो जायगा ।
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दादू विषम दुहेला जीव को, सद्गुरु थैं आसान ।
जब दरवे१ तब पाइये, नेड़ा ही सुस्थान ॥६२॥
६१ में कही चारों बातें अज्ञानी जीव को प्राप्त होना कठिन ही नहीं हैं, अति दुर्लभ भी है, परन्तु सद्गुरु की कृपा से तो ज्ञान द्वारा सहज ही प्राप्त हो सकती है । जब गुरुदेव कृपा१ करते हैं तब अति समीप अन्त:करण में ही ब्रह्म रूप श्रेष्ठ धाम प्राप्त होता है ।
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गुरुज्ञान
दादू नैन न देखे नैन को, अंतर१ भी कुछ नांहिँ ।
सद्गुरु दर्पण कर दिया, अरस परस मिल मांहिँ ॥६३॥
६३ - ६५ में गुरुज्ञान की विशेषता बता रहे हैं - जैसे नेत्र से दूसरा नेत्र कुछ भी दूर१ नहीं है तो भी बिना दर्पण के नेत्र दूसरे नेत्र को नहीं देख सकता, वैसे ही आत्मा और ब्रह्म में कुछ भी भेद नहीं हैं तो भी सद्गुरु - ज्ञान बिना आत्मा ब्रह्म को नहीं देख सकता । जब सद्गुरु अन्त:करण रूप हाथ में ज्ञान - दर्पण देते हैं तब आत्मा ब्रह्म का साक्षात्कार करके उसी में अभेद हो जाता है ।
(क्रमशः)

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