🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान, अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महंत महमंडलेश्वर संत १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
.
*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ द्वितीय उल्लास =*
.
*२- प्रेमाभक्ति*
.
*विज्जुमाला३ (विद्युन्माला)*
*प्रेमाधीना छाक्या डोलै ।*
*क्यौं का क्यों ही वांनी बोलै ।*
*जैसे गोपी भूली देहा ।*
*ताकौं चाहै जासौं नेहा ॥४१॥*
(३- विज्जुमाला = विद्युन्माला छन्द आठ गुरु वा दो मगण दो गुरु का वर्ण-छन्द है ।)
वह भक्त प्रेम के वश में मस्त हो संसार में विचरण करता है । उसके मुँह से अटपटी वाणी निकलती रहती है । जैसे गोपियों ने कृष्ण प्रेम में विभोर हो अपने तन की सुधि भुला दी थी, और वे अटपटे-वचन बोलती रहती थीं, दही बेचने निकलती थीं तो बोलना चाहिये था दही और मुँह से निकल पडता कन्हैया-कन्हैया । प्रेमा-भक्ति में भक्त का इन गोपियों की तरह का प्रेम ही भगवान् के प्रति होना चाहिये ॥४१॥
.
*छप्पय*
*कब हूँ कै हसि उठय,*
*नृत्य करि रोवन लागय ।*
*कब हूँ गदगद कंठ,*
*शब्द निकसै नहिं आगय ॥*
*कब हूँ हृदय उमंगि,*
*बहुत उच्चय स्वर गावै ।*
*कब हूँ कै मुख मौंनि,*
*मग्न ऐसैं रहि जावै ॥*
*तौ चित वृत्य हरि सौं लगी,*
*सावधान कैसैं रहै ।*
*यह प्रेमलक्षणा भक्ति है,*
*शिष्य सुनहिं सद्गुरु कहै ॥४२॥*
(प्रेमाभक्ति का और विस्तार से वर्णन कर रहे हैं-) वह भक्त कभी प्रेमावेश में अचानक हँसने लगता है, कभी नाचने लगता है, और कभी रोने लगता है । कभी ऐसा गद्गद हो जाता है कि उसके मुख से कोई स्पष्ट बोल नहीं निकल पाते । कभी हृदय में ऐसी उमंग उठती है कि उसी में विभोर होकर ऊँचे स्वर में भगवद् गुणगान करने लगता है । और कभी मौन होकर भगवच्चरण चिन्तन में मग्न हो जाता है । भक्त की चितवृति जब भगवान् में लग जाती है तो वह सांसारिक व्यवहारों में कैसे सावधान रह सकता है ! भक्त की यह स्थिति प्रेमलक्षणा भक्ति कहलाती है - ऐसा शिष्य को सद्गुरु बतलाते हैं ॥४२॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें