शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

= विन्दु (२)६८ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
https://www.facebook.com/DADUVANI
*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-२)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
.
*= विन्दु ६८ =*
*= दादूजी और मानसिंह का संवाद =*
.
उन निन्दकों की सब बातें सुनकर राजा मानसिंह ने कहा - ठीक है, मैंने आप लोगों के कथन को ध्यानपूर्वक सुन लिया है, अब इस पर मैं विचार करूंगा, अब तो आप लोग पधारें । फिर दूसरे दिन राजा मानसिंह दादूजी के पास गये और प्रेमपूर्वक प्रणाम करके हाथ जोड़े हुये सामने बैठ गये फिर प्रेम पूर्वक बोले - स्वामिन् ! मैं पहले रामगढ़ में आपसे मिला था, आप, भूल तो नहीं गये हैं । भगवन् ! मैं तो आपका सेवक हूँ फिर भी मैं यहां आया तब आपने आकर मेरे दुःख-सुख की बातें नहीं पूछी, सो क्या बात है ?
.
दादूजी ने कहा - जिस प्रकार हमें परमात्मा की आज्ञा है, उस प्रकार से हमने आपका कुशल समाचार आपके पास आने-जाने वाले सज्जनों से पूछ लिया था और उन सज्जनों से हमें ज्ञात हो गया था कि महाराज प्रसन्न हैं । यदि आपको कोई कष्ट होता तो हम आते, यही संतों की मर्यादा है । अब आप अपनी मर्यादा का निर्वाह करने यहां आ ही गये हैं । ऐसी ही राजाओं की मर्यादा है । राजा महाराजा सदा से ही संतों के पास जाते रहे हैं, सो आप भी अब यहां आ ही गये हैं । हम अपनी मर्यादा में रहे और आप अपनी मर्यादा में रहे ऐसा ही होना चाहिये ।
.
दादूजी का उक्त कथन सुनकर राजा मानसिंह कुछ क्षण मौन रहे फिर बोले - स्वामिन् ! मैंने सुना है- आपके यहां किसी संत का देहान्त हो गया था, तब आपने उसका क्या संस्कार कराया था ? अग्नि संस्कार किया था या भूमि में समाधि दी थी ? तब दादूजी ने कहा - संत और शूर वीर के शव को तो मैदान में पशु पक्षी ही खाते हैं । उन के शव को श्मशान में जलाने व् भूमि में गाड़ने की आवश्यकता नहीं रहती है ।
(क्रमशः)


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें