शनिवार, 13 फ़रवरी 2016

= विन्दु (२)६८ =

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-२)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= विन्दु ६८ =*
*= दादूजी और मानसिंह का संवाद =*
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फिर दादूजी ने दो साखी सुनाई -
कबीर मरना तहँ भला, जहां न अपना कोय ।
माटी भखै जनावरा, मुवा न रोवे कोय ॥
हरि भज साफल जीवना, पर उपकार समाय ।
दादू मरणा तहँ भला, जहँ पशु पक्षी खाय ॥
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ऐसा ही प्राचीन संतों ने कहा है -
"यत्र कुत्र मृतो भक्तः क्रियां कुर्वन्ति पक्षिणः ।
परं स्थानं गताः प्राणाः मुक्तिरेव न संशयः॥
नैव दग्धं नैव दग्धं विद्रोहेण कदाचन ।
ज्ञान दग्धं शरीराणां पुनर्दाहो न विद्यते॥ "
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अतः हमने उस संत के शरीर का पवन संस्कार कराया था, वह हमारी दृष्टि से श्रेष्ठ है । स्वामी दादूजी का उक्त कथन सुनकर राजा मानसिंह बोले - भगवन् ! पवन संस्कार तो मैंने सुना भी नहीं था, किसी ने आज तक बताया भी नहीं था । अग्नि भूमि और जल संस्कार तो शव के देखे भी हैं और पहले से सुनते भी आ रहे हैं । गंगा में शव डाल देते हैं, यह जल संस्कार भी करते हैं किंतु पवन संस्कार की बात तो आज आप से ही सुनी है ।
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राजा का उक्त कथन सुनकर दादूजी ने कहा - वेद, शास्त्र और संतों ने षट् प्रकार के संस्कार कहे हैं किंतु सब उन षट् संस्कारों को नहीं जानते । संतों के और रण में देह त्यागने वाले वीरों के शव के संस्कार तो प्रायः पवन के ही होते हैं । विरही जन का विरह दाग भी होता है और ज्ञानियों का ज्ञान-दाग कहा जाता है ।
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इस प्रकार - १ अग्नि, २ भूमि, ३ जल, ४ पवन, ५ विरह और ६ ज्ञान ये छः दाग कहे जाते हैं । राजन् ! इनको विद्वान् संत ही जानते हैं, सब नहीं जानते । अब तुम इनके लक्षण सुनो । अग्नि, भूमि और जल तीन को तुम स्वीकार करते हो, शेष तीन के लक्षण सुनो -
(क्रमशः)


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