बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

= विन्दु (२)६७ =

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-२)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= विन्दु ६७ =*
*= माधवदासजी द्वारा ज्वार भेंट =*
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दादूजी महाराज आमेर में विराज रहे थे उन्हीं दिनों में माधवदासजी एक समय डहरे गये थे । वहां का एक भक्त माधवदासजी के लिये अपने खेत की हरी नूतन दूधिया ज्वार लाया था । उसे देखकर माधवदासजी के मन में विचार हुआ - यह नूतन अन्न है । नवीन अन्न गुरुदेव को जिमाकर ही जीमना चाहिये ।
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इसी आशय से माधवदासजी ने वह ज्वार अपनी योगशक्ति से दादूजी के पास आमेर भेज दी । वह ज्वार आमेर में आई तब सत्संग हो रहा था । अकस्मात् दादूजी के पास हरी ज्वार प्रकट हुई देखकर सत्संगियों को अति आश्चर्य हुआ कि यह हरी दुधिया ज्वार सहसा कहां से आई है ? किसी को लाकर रखते भी नहीं देखा है ।
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फिर टीलाजी ने पूछा - भगवन् ! यह हरी दुधिया ज्वार कहां से आई है ? कोई लाने वाला तो दिखाई दिया नहीं । तब दादूजी ने कहा - माधवदास ने डहरे ग्राम से अति भाव - प्रेम से भेजी है । फिर उस ज्वार से कुछ दाने दादूजी महाराज ने प्रभु के भोग लगाकर पाये और पास बैठे हुये संत तथा सत्संगियों को भी प्रसाद दिया फिर दादूजी ने भी शेष को प्रसादरूप में पुनः डहरे माधवदास के पास अपनी योगशक्ति से भेज दी ।
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माधवदासजी के पास भी कुछ भक्त उस समय बैठे थे जब ज्वार वहां पहुँची थी । माधवदासजी के सन्मुख भी अकस्मात् जब ज्वार प्रकट हुई तो उन भक्तों ने आश्चर्य युक्त होकर पूछा - यह ज्वार कहां से आई, तब माधवदासजी ने सब वृत्तांत ज्यों का त्यों सुना दिया और स्वयं ने प्रसाद लेकर सबको प्रसाद दिया ।
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कहा भी है -
"गुरु दादू आमेर में, डहरे माधवदास ।
भेजी भेंट ज्वार की, अलख दरीबे पास ॥"
अलख(मन इन्द्रियों के अविषय परमात्मा) दरीबा(बाजार) अर्थात् जैसे बाजार में वस्तु मिलती है, वैसे ही गुरुदेव से परब्रह्म की प्राप्ति होती है । अतः गुरुदेव ही अलख दरीबा हैं, उनके पास भेजी थी । गुरुदेव से परब्रह्म तथा परब्रह्म प्राप्ति के साधन प्राप्त होते हैं, इससे गुरु ही अलख दरीबा सिद्ध होते हैं । अलख दरीबे पास का अर्थ यही है - दादूजी के पास भेजी थी ।
= इति श्री दादूचरितामृत विन्दु ६७ समाप्तः ।
(क्रमशः)

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