बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

= ४७ =

卐 सत्यराम सा 卐
रहते सेती लाग रहु, तो अजरावर होइ ।
दादू देख विचार कर, जुदा न जीवै कोइ ॥ 
जेती करणी काल की, तेती परिहर प्राण ।
दादू आतमराम सौं, जे तूं खरा सुजाण ॥ 
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साभार ~ Atul Modi

एक बार एक पुत्र अपने पिता से रूठ कर घर छोड़ कर दूर चला गया | और फिर इधर उधर यूँही भटकता रहा | दिन बीते, महीने बीते और साल बीत गए | एक दिन वो बीमार पड़ गया | अपनी झोपडी में अकेले पड़े उसे अपने पीता के प्रेम की याद आई कि कैसे उसके पिता उसके बीमार होने पर उसकी सेवा किया करते थे | उसे बीमारी में इतना प्रेम मिलता था कि वो स्वयं ही शीघ्र अति शीघ्र ठीक हो जाता था | उसे फिर एहसास हुआ कि उसने घर छोड़ कर बहुत बड़ी गलती की है, वो रात के अँधेरे में ही घर की और हो लिया | जब घर के नजदीक गया तो उसने देखा आधी रात के बाद भी दरवाज़ा खुला हुआ है | अनहोनी के डर से वो तुरंत भाग कर अंदर गया तो उसने पाया की वहीं आंगन में उसके पिता लेटे हुए हैं | उसे देखते ही उन्होंने उसका बांहे फैला कर स्वागत किया | पुत्र की आँखों में आंसू आ गए | उसने पिता से पुछा "ये घर का दरवाज़ा खुला है, क्या आपको आभास था कि मैं आऊंगा?" पिता ने उत्तर दिया "अरे पगले ये दरवाजा उस दिन से बंद ही नहीं हुआ जिस दिन से तू गया है, मैं सोचता था कि पता नहीं तू कब आ जाये और कहीं ऐसा न हो कि दरवाज़ा बंद देख कर तू वापिस लौट जाये |" ठीक यही स्थिति उस परमपिता परमात्मा की है | उसने भी प्रेमवश अपने भक्तों के लिए द्वार खुले रख छोड़े हैं कि पता नहीं कब भटकी हुई कोई संतान उसकी और लौट आये | हमें भी आवश्यकता है सिर्फ इतनी कि उसके प्रेम को समझे और उसकी और अग्रसित हों |
वैभव त्रिपाठीजी की पोस्ट से...... 
जय श्री महाकाल
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साभार ~ Chetna Kanchan Bhagat
इस देश ने नमस्कार का एक अद्भुत ढंग निकाला । दुनिया में ऐसा कहीं भी नहीं है । इस देश ने कुछ अपूर्व दान दिया है, मनुष्य की चेतना को । यह अकेला देश है जहाँ जब दो व्यक्ति नमस्कार करते हैं तो दो काम करते हैं । एक तो दोनों हाथ जोडते हैं, दूसरा परमात्मा का स्मरण ।
दो हाथ जोडने का मतलब होता है - दो नहीं, एक है । दो हाथ दुई के प्रतीक है, द्वैत के प्रतीक है । उन दोनों को जोड लेते हैं कि दो नहीं है एक ही है ।उस एक का स्मरण दिलाने के लिए दोनो हाथो को जोडकर नमस्कार करते है । और दोनों हाथ जोडकर जो भी शब्द उपयोग करते हैं, वह परमात्मा का स्मरण होता है । कहते हैं - राम राम, जै राम, या कुछ भी । लेकिन वह परमात्मा का नाम होता है, दो को जोडा कि परमात्मा का नाम उठा । दुई गयी कि परमात्मा आया । दो हाथ जुडे और एक हुए, कि फिर बचा क्या ?
हे राम



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