बुधवार, 17 फ़रवरी 2016

= ६३ =

卐 सत्यराम सा 卐
भाई रे घर ही में घर पाया ।
सहज समाइ रह्यो ता मांही, सतगुरु खोज बताया ॥ टेक ॥
ता घर काज सबै फिर आया, आपै आप लखाया ।
खोल कपाट महल के दीन्हें, स्थिर सुस्थान दिखाया ॥ १ ॥
भय औ भेद भरम सब भागा, साच सोई मन लाया ।
पिंड परे जहाँ जिव जावै, ता में सहज समाया ॥ २ ॥
निश्चल सदा चलै नहिं कबहूँ , देख्या सब में सोई ।
ताही सौं मेरा मन लागा, और न दूजा कोई ॥ ३ ॥
आदि अनन्त सोई घर पाया, अब मन अनत न जाई ।
दादू एक रंगै रंग लागा, तामें रह्या समाई ॥ ४ ॥
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साभार ~ Anand Nareliya

राबिया के घर एक सूफी फकीर हसन ठहरा हुआ था। वह रोज सुबह प्रार्थना करता था। उसने सुना होगा जीसस का वचन कि खटखटाओ और द्वार तुम्हारे लिए खोल दिए जाएंगे। आस्क एंड इट शैल बी गिवेन। सीक एंड यू विल फाइड। नाक एंड द डोर शैल बी ओपड अनटु यू।

उसने ये वचन सुने होंगे। ये वचन उसे बहुत जंच गए थे। उसने इनकी प्रार्थना बना ली थी। वह रोज सुबह काबा की तरफ हाथ जोड़कर कहता. हे प्रभु! कितनी देर से खटखटा रहा हूं दरवाजा खोलिए। कितनी देर हो गयी खटखटाते — खटखटाते! कब दरवाजा खुलेगा? अपना वचन याद करो—कि खटखटाओगे और दरवाजा खुलेगा। और मैं खटखटाए जा रहा हूं! और मैं खटखटाए जा रहा हूं! दरवाजा खुलता नहीं।

राबिया ने एक दिन सुना, दो दिन सुना, तीन दिन सुना.।

राबिया बड़ी अदभुत औरत थी। थोड़ी ही स्त्रियां दुनिया में हुई हैं राबिया की कोटि की—मीरा, सहजो, दया, लल्ला—बहुत थोड़ी सी स्त्रियां; उंगलियों पर गिनी जा सकें। राबिया उसी कोटि की स्त्री है, जिस कोटि के बुद्ध, जिस कोटि के महावीर, जिस कोटि के कृष्ण, क्राइस्ट।

एक दिन सुबह फिर हसन वही कर रहा था। हाथ फैलाए हुए। आंसू बहे जा रहे हैं आंखों से और कह रहा है. अब खोलो प्रभु! कब से खटखटा रहा हूं।

राबिया पीछे से आयी और उसका सिर झंझोड़कर बोली कि बंद कर बकवास। दरवाजे खुले हैं। तू खटखटा क्यों रहा है! दरवाजे कभी बंद ही नहीं थे नासमझ। दरवाजे सदा से खुले हैं। उसके दरवाजे बंद कैसे हो सकते हैं! तूने यह कहां की बकवास लगा रखी है! तू जिंदगी भर यही बकता रहेगा और दरवाजा खुला है। अब परमात्मा भी क्या करे। वह भी अचकचाकर बैठा होगा कि करना क्या! दरवाजा खुला है। अब और क्या खोलना! और ये सज्जन यही कहे जा रहे हैं कि दरवाजा खोलो। खटखटा रहा हूं। दरवाजा खोलो।

राबिया ने दूसरा सत्य कहा। राबिया यह कह रही है कि बहुत खटखटा चुका। अब खटखटाना छोड़। जरा खटखटाना छोड़कर आंख खोल। तू खटखटाने में ही उलझा है और दरवाजा खुला है! अब तू जरा आंख खोल। खटखटाने की उलझन से मुक्त हो। छोड़ यत्न, और देख—क्या है। जो है, वही मुक्तिदायी है।...osho

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