बुधवार, 3 फ़रवरी 2016

= ३३ =

卐 सत्यराम सा 卐
दादू जैसे श्रवणा दोइ हैं, ऐसे होंहि अपार ।
राम कथा रस पीजिये, दादू बारंबार ॥
जैसे नैना दोइ हैं, ऐसे होंहि अनंत ।
दादू चंद चकोर ज्यों, रस पीवैं भगवंत ॥
ज्यों रसना मुख एक है, ऐसे होंहि अनेक ।
तो रस पीवै शेष ज्यों, यों मुख मीठा एक ॥
ज्यों घट आत्म एक है, ऐसे होंहि असंख ।
भर भर राखै रामरस, दादू एकै अंक ॥
ज्यों ज्यों पीवै राम रस, त्यों त्यों बढै पियास ।
ऐसा कोई एक है, बिरला दादू दास ॥ 
===========================
साभार ~ Krishnacharandas Aurobindo ~
आचार्य ::--
आचार्य किसे कहते हैं....?? 
पहले किसी विद्या का ज्ञान पुर्णरुप से रखनेवाले को आचार्य कहते थे.....!! जो आपको कुछ शिक्षा दे वो भी आपके लिये आचार्य हैं.... और मुमुक्षु साधक के लिये भगवान सारे संसार का रूप होने से.... आध्यात्मिक अर्थ में आचार्य हैं...!! इह संसार .....हरे शरीरम्...!! यह संसार भगवान श्रीहरी का शरीर हैं.... ऐसी भावना में जिसकी स्थिती हो गई उनमें प्रातःस्मरणीय श्रीनामदेव परम आचार्य थे.....हैं....!! क्योंकि संत हमेशा होते हैं...!!
जो किसी को शिक्षा देने से पहले अपने जीवन में उतारे....... केवल ऐसे निरपेक्ष संत ही यथार्थ रुपमें संसार के लिये आचार्य हैं...!! "आम्ही वैकुण्ठवासी। आलो याच कारणासी।।
ऋषिमुनि जे बोलीले। साच भावे वर्तावया।। - संत तुकाराम
अर्थ - हम वैकुण्ठवासी आये केवल इसी कारणसे की.... जो ऋषिमुनियो ने वेदों में शास्त्रों में जैसी भगवान ने आचार-विचार की आज्ञा दी....उसे अपने जिवन में प्रत्यक्ष उतारकर दिखाने को....!!!"
संत तुकाराम महाराज ऐसे परमाचार्य हुए कि जिन्होंने कई मनुष्यों को आचार्य बनाया.... भगवत् प्राप्ति सुलभ कर दी...!!
बाकी संसारमें कुछ लोग अपने जीवन से मिथ्यात्व को हटाये बिना शिक्षा देते हैं.... और लोग भी उन्हीं की तरह ब्रह्मज्ञान को रट लेते हैं ....!! और उगलते रहते हैं...!! सत्संग का मोल बहोत तब है.... जब आपको कोई ऐसे संत मिले जिन्होंने भगवान की प्राप्ति की हो.... जो भगवत् स्वरुप बन गये हो....!! संतके लक्षण...."तुल्य निंदा-स्तुति, मौनी, निरपेक्ष, संसारी विषयों में उदासीन, अनासक्त, सर्वारंभपरित्यागी..... अब ऐसे समस्त लक्षण तो शायद ही किसी में मिले.......!! कुछ मात्रा में भी मिले तो ऐसा संग भी सत् चर्चा के कारण सत्संग जैसा माना जायेगा....!! जिस चर्चा से मन उदात्त हो जाय.... वो सत् चर्चा भी आज के जैसे घोर कलियुग में बहोत मूल्यवान हैं....!!
भगवान के नाम का उच्चस्वर से संकिर्तन सबसे बढीया सत्संग है(वास्तविक संतों की अनुपस्थिति में) जिससे वातावरण को शुध्द बनाया जाता है.... जहाँ तक सुनायी दे...... और ऐसे संकिर्तन के शब्द तो सारे ब्रह्माण्ड को पवित्र करते हैं !!
"मद्भक्तः भुवनं पुनाति - मेरे भक्त मेरे नामों का किर्तन, मेरी लीलाकथाओं का गायन, कथन से सारे विश्व को पुनीत करते हैं....!! 
आप सब ऐसे भगवन्नामनिष्ठ, भगवान की कथाओं को कानों के दोनों से भर भर पिनेवाले भगवत्प्रेम में मतवाले हो यही शुभकामना।।
भगवान को खाओ, भगवान को पियो, भगवान को पहनो, भगवान को ओढो, भगवान के साथ खेलो, भगवान के साथ चलो.....सारी क्रियाओं को भगवान के नाम-स्मरण से स्पंदीत, स्पर्शित करो..... भगवन्मय बन जाओ.....!! यही जीवन है !!!! 
Let all of thyself become श्रीकृष्ण.... This is thy goal....!! - श्रीअरविंद
Live this alone..... leaving everything else aside.....!!!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें