मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

= ३१ =

卐 सत्यराम सा 卐
‘पाया पाया’ सब कहैं, केतक ‘देहुँ दिखाइ’ ।
कीमत किनहूँ ना कही, दादू रहु ल्यौ लाइ ॥ 
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साभार ~ Manoj Puri Goswami ~
छः अंधे और हाथी - अनेकान्तवाद~

अनेकांतवाद के सिद्धांत को स्पष्ठ करने के पूर्व, जो दृष्टांत अनेकांतवाद के लिए दिया जाता है। यहां प्रस्तुत करता हूँ।
एक गांव में जन्मजात छः अन्धे रहते थे। एक बार गांव में पहली बार हाथी आया। अंधो नें हाथी को देखने की इच्छा जतायी। उनके एक अन्य मित्र की सहायता से वे हाथी के पास पहुँचे। सभी अंधे स्पर्श से हाथी को महसुस करने लगे। वापस आकर वे चर्चा करने लगे कि हाथी कैसा होता है। पहले अंधे ने कहा हाथी अजगर जैसा होता है। दूसरे नें कहा नहीं, हाथी भाले जैसा होता है। तीसरा बोला हाथी स्तम्भ के समान होता है। चौथे नें अपना निष्कर्ष दिया हाथी पंखे समान होता है। पांचवे ने अपना अभिप्राय बताया कि हाथी दीवार जैसा होता है। छठा ने विचार व्यक्त किए कि हाथी तो रस्से समान ही होता है। अपने अनुभव के आधार पर अड़े रहते हुए, अपने अभिप्राय को ही सही बताने लगे। और आपस में बहस करने लगे। उनके मित्र नें उन्हें बहस करते देख कहा कि तुम सभी गलत हो, व्यथा बहस कर रहे हो। अंधो को विश्वास नहीं हुआ।
पास से ही एक दृष्टिवान गुजर रहा था। वह अंधो की बहस और मित्र का निष्कर्ष सुनकर निकट आया और उस मित्र से कहने लगा, यह छहो सही है, एक भी गलत नहीं।
उन्होंने जो देखा-महसुस किया वर्णन किया है, जरा सोचो सूंढ से हाथी अजगर जैसा ही प्रतीत होता है। दांत से हाथी भाले सम महसुस होगा। पांव से खंबे समान तो कान से पंखा ही अनुभव में आएगा। पेट स्पर्श करने वाले का कथन भी सही है कि वह दीवार जैसा लगता है। और पूँछ से रस्से के समान महसुस होगा। यदि सभी अभिप्रायों का समन्वय कर दिया जाय तो हाथी का आकार उभर सकता है। जैसा कि सच में हाथी है।
प्रस्तुत दृष्टांत आपने अवश्य सुना पढा होगा, विभिन्न दर्शनों ने इसका प्रस्तुतिकरण किया है।
इस कथा का कृपया विवेचन करें……
*.प्रस्तुत दृष्टांत का ध्येय क्या है?
*.इस कथा का अन्तिम सार क्या है?
*.विभिन्न प्रतीकों के मायने क्या है?
*.क्या कोई और उदाहरण है जो इसका समानार्थी हो?
*.यह दृष्टांत किस तरह के तथ्यों पर लागू किया जा सकता है?

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