सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

= ज्ञानसमुद्र(द्वि. उ. ५-६) =

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🌷🙏🇮🇳 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🇮🇳🙏🌷
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स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान, अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महंत महमंडलेश्वर संत १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ द्वितीय उल्लास =*
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*- शिष्य उचाव - छप्पय -*
*नवधा भक्ति बखांनि कहौ, गुरु भिन्न - भिन्न करि ।*
*प्रेम लक्षणा कौंन, सुनावहु सीस हाथ धरि ॥*
*परा भक्ति कौ भेव, कहौ प्रभु कौंन प्रकारा ।*
*को उत्तम को मध्य, कवन कनिषट३ निर्द्धारा ॥*
*यह दयासिंधु मोसौं कहहु, तुम समान नहिं कोइ है ।*
*जब कृपा कटाक्षहि देखि हौं, तब मम कारज होइ है ॥५॥*
{३. इस छप्पय के चौथे चरण में 'कनिष्ट' शब्द 'कनिषट' ऐसा बुलैगा - क्योंकि 'रोला' छन्द का नियम है कि पीछले चरणार्द्ध में मात्राओं की रचना =(३×२) +(४+ ४) अथवा(३+२ )( ३+३+२) हो ।}
(शिष्य पूछता है -) गुरुदेव ! कृपया पहले नवधा भक्ति का, अलग अलग कर, वर्णन कीजिये । फिर मेरे सिर पर हाथ रख कर(आशीर्वाद देकर) प्रेमलक्षणा भक्ति का उपदेश कीजिये । हे प्रभो ! साथ ही परा भक्ति के बारे में भी विस्तार से बताइये । और इन तीनों में कौन उत्तम है ? कौन मध्यम है, एवं कौन कनिष्ट है ? - यह भी निश्चय कर दिजीये । हे दया के सागर ! यह सब मुझे साफ-साफ बताइये, क्योंकि आप सा दयालु(शिष्यवत्सल) ज्ञानी इस दुनिया में दूसरा कोइ नहीं है । मेरा यह कार्य(ज्ञान - प्राप्ति) तभी पूर्ण होगा जब आपकी मुझ पर कृपा दृष्टि होगी ॥५॥
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*- १. नवधा भक्ति - श्रीगुरुरुवाच - चौपई -*
*सुनि सिख नवधा भक्ति बिधांनं ।*
*श्रवन कीर्त्तन समरण जांनं ।*
*पादसेवनं अर्चन वंदन ।*
*दासभाव सख्यत्व समर्प्पन ॥६॥*
(गुरुदेव कहते हैं -) हे शिष्य ! पहले नवधा भक्ति की विधि सुनो । इसमें पहली श्रवनभक्ति, दूसरी कीर्तनभक्ति और तीसरी स्मरणभक्ति जाननी चाहिये । चौथी चरणसेवन, पाँचवी अर्चन(पूजा ), छठी वन्दन(स्तुति ), सातवीं दास्य(सेवा) भाव, आठवीं सख्यत्व(भगवान् के प्रति मैत्री) और नौंवी समर्पणभक्ति - यों यह भक्ति नवधा(नौ प्रकार की) भक्ति कहलाती है ।(इन सब के अलग-अलग लक्षण आगे कहे जायँगें) ॥६॥
(क्रमशः)

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