卐 सत्यराम सा 卐
मति मोटी उस साधु की, द्वै पख रहित समान ।
दादू आपा मेट कर, सेवा करै सुजान ॥
कछु न कहावै आपको, काहू संग न जाइ ।
दादू निरपख ह्वै रहै, साहिब सौं ल्यौ लाइ ॥
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साभार ~ Anand Nareliya ~
ताओ उपनिषाद (भाग–3) प्रवचन–64...osho
हर आदमी अनूठा पैदा होता है। और हम आदर्श देते हैं उसको कुछ होने के कि तू यह हो जा! कठिनाई है मां-बाप की, क्योंकि उनको भी पता नहीं कि घर में जो पैदा हुआ है, वह क्या हो सकता है। किसी को भी पता नहीं। अभी तो वह जो पैदा हुआ है, उसको भी पता नहीं कि वह क्या हो सकता है। सारा जीवन अज्ञात में विकास है। तो मां-बाप की बेचैनी यह है कि कोई ढांचा क्या दें वे?
तो जो पहले लोग हो चुके हैं चमकदार, उनका ढांचा देते हैं कि तुम ऐसे हो जाओ। वह ढांचा फांसी बन जाता है। और वह ढांचा ही प्रकृति के प्रतिकूल ले जाने का कारण हो जाता है।
फिर हम ढांचे में ढाल कर व्यक्तियों को खड़ा कर देते हैं। वे फंसे हुए लोग हैं, जिनके चारों तरफ लोहे की जंजीरें हैं सख्त। उनमें से निकलना मुश्किल है। जब तक मनुष्यता यह स्वीकार न कर ले कि प्रत्येक व्यक्ति अनूठा है, और किसी की कापी न है और न हो सकता है। दो व्यक्ति समान नहीं हैं; हो भी नहीं सकते; होना भी नहीं चाहिए। अगर आप कोशिश करके राम हो भी जाएं, तो आप एक बेहूदा दृश्य होंगे, और कुछ भी नहीं। राम का होना तो एक बात है, आपका होना सिर्फ नकल होगा। झूठे होंगे आप। सच्चे राम होने का कोई उपाय नहीं। कारण? क्योंकि सच्चे राम होने के लिए बड़ी कठिनाई है। कठिनाई क्या है? यह नहीं कि राम होना बड़ा कठिन है। राम बिना कोशिश किए हो गए, इसलिए बहुत कठिन तो मालूम नहीं होता। या कि बुद्ध होना बहुत कठिन है? बुद्ध बिना कोशिश किए हो गए; कोई बहुत कठिन नहीं है। कठिनाई दूसरी है।
एक-एक व्यक्ति इतिहास, समय और स्थान के ऐसे अनूठे बिंदु पर पैदा होता है, उस बिंदु को दुबारा नहीं दोहराया जा सकता। वह बिंदु एक दफा आ चुका, और अब कभी नहीं आएगा। इसलिए कोई आदमी दोहर नहीं सकता। इसलिए सब आदर्श खतरनाक हैं।
फिर हम किसी व्यक्ति को स्वीकार नहीं करते हैं। हम सब का अहंकार है भीतर; वह सिर्फ अपने को स्वीकार करता है और अपने अनुसार सबको चलाना चाहता है। इस दुनिया में सबसे खतरनाक और अपराधी लोग वे ही हैं, जो अपने अनुसार सारी दुनिया को चलाना चाहते हैं। इनसे महान अपराधी खोजने कठिन हैं; भला आप उनको महात्मा कहते हों। आपके कहने से कोई फर्क नहीं पड़ता।
जब भी मैं कोशिश करता हूं कि किसी को मेरे अनुसार चलाऊं, तभी मैं उसकी हत्या कर रहा हूं। मेरे अहंकार को तृप्ति मिल सकती है कि मेरे अनुसार इतने लोग चलते हैं; लेकिन मैं उन लोगों को मिटा रहा हूं।
इसलिए वास्तविक धार्मिक गुरु आपको आपके निसर्ग की दिशा बताता है; आपको अपने अनुसार नहीं चलाना चाहता। आपको कहता है कि आप अपने अनुसार ही हो जाएं, और इस होने के लिए जो भी त्यागना पड़े और जो भी मुसीबत झेलनी पड़े, वह झेल लें। क्योंकि सब मुसीबतें छोटी हैं, अगर उस आनंद का पता मिल जाए, जो स्वयं के अनुसार होने से मिलता है। सब मुसीबतें छोटी हैं; उसकी कोई कीमत नहीं है। सब मुसीबतें आसान हैं।
और आप दूसरे के अनुसार बनने की कोशिश करते रहें, तो आप दुखी, और दुखी, और दुखी होते चले जाएंगे। कभी आपको आनंद की कोई झलक न मिलेगी।
आनंद की झलक का मतलब ही है कि मेरी प्रकृति और विराट की प्रकृति के बीच कोई तालमेल खड़ा हो गया, कोई हार्मनी आ गई। अब दोनों एक लय में बद्ध होकर नाच रहे हैं। मेरा हृदय विराट के हृदय के साथ लयबद्ध हो गया; मेरा स्वर और विराट का स्वर मिल गया; अब दोनों में जरा भी फासला नहीं है।
तो मुझे अपने ही अनुसार, अपने ही जैसा होना चाहिए। इसके लिए कोई मुझे सहायता नहीं देगा। सब इसमें बाधा डालेंगे; क्योंकि सब चाहेंगे कि उनके अनुसार हो जाऊं।
मां-बाप चाहते हैं; फिर स्कूल में शिक्षक हैं, वे चाहते हैं; फिर नेता हैं, फिर महात्मा हैं, फिर पोप हैं, शंकराचार्य हैं, वे चाहते हैं कि मेरे अनुसार हो जाओ। इस दुनिया में आपको चारों तरफ, जैसे बहुत से गिद्ध आप पर टूट पड़े हों, वे सब आपको अपना भोजन बनाना चाहते हैं। इसमें आप भूल ही जाते हैं कि आप सिर्फ अपने जैसे होने को पैदा हुए थे। पर एक बात तो पक्की है कि आप दुखी होते रहते हैं। उस दुख को ही पहचानें। अगर आप दुखी हैं, तो समझ लें कि यह पक्की है बात, आप निसर्ग के प्रतिकूल चल रहे हैं। दुख काफी सबूत है।
और जब आप दुखी होते हैं तो पता है, आप क्या करते हैं? आप जब दुखी होते हैं, तब आप वही भूल दोहराते हैं जिसके कारण आप दुखी हैं। तब आप किसी से पूछने जाते हैं कि कोई रास्ता बताइए, जिस पर मैं चलूं और मेरा दुख मिट जाए। वह आपको रास्ता बताएगा कोई न कोई। वह रास्ता उसका होगा। और हो सकता है, उस पर चलने से उस आदमी का दुख भी मिट गया हो। मगर वह रास्ता उसका होगा। और दूसरे का रास्ता आपका रास्ता नहीं हो सकता। आपको अपना रास्ता खोजना पड़ेगा।
आप दूसरों के रास्तों से परिचित हो लें, इससे सहयोग मिल सकता है। आप दूसरे के रास्तों को पहचान लें, इससे अपने रास्ते की खोज में सहारा मिल सकता है। लेकिन किसी दूसरे के रास्ते पर अंधे की तरह चले अगर आप, तो आपको अपना रास्ता कभी भी नहीं मिलेगा। कितने लोग महावीर के पीछे चले हैं, और एक भी महावीर नहीं हो सका। और कितने लोग बुद्ध के पीछे चले हैं, और एक भी बुद्ध नहीं हो सका। क्या कारण है? इतना अपव्यय हुआ है शक्ति का, कारण क्या है?
कारण एक है: आपका रास्ता किसी दूसरे का रास्ता नहीं है, और किसी दूसरे का रास्ता आपका रास्ता नहीं है। आत्माएं अद्वितीय हैं, और हर आत्मा का अपना रास्ता है।
तो क्या करें? अपने दुख को समझें, अपने दुख के कारण को खोजें कि मेरे दुख का कारण क्या है। उस कारण से हटने की कोशिश करें। रास्ते मत खोजें, दूसरों से जाकर मत पूछें। क्या है दुख का कारण आपका?
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