🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-२)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
.
*= विन्दु ७३ =*
*= लौंग प्रसाद का रहस्य =*
.
टौंक महोत्सव में आये हुये सभी संत समाज का कहना था - अनादि ब्रह्म ही दादूजी के रूप में प्रकट हुये हैं । इसी से सबने दादूजी के करकमलों से प्रसाद लेना चाहा था । उन सब संतात्माओं का सच्चा स्नेह देखकर ही दीनदयालु दादूजी के मन में दया आगई थी ।
.
इसीसे उन्होंने अनेक शरीर धारण कर के संतों के भावानुसार लौंग का प्रसाद सब को एक साथ ही दे दिया था । समर्थ प्रभु जो करना चाहते हैं, उसे कर ही देते हैं । उन अविगत(मन इन्द्रियों के अविषय) परमात्मा की लीला को अज्ञानी कोई भी नहीं जान सकता ।
.
उसको प्राप्त करने वाले संत भी उसीके रूप हो जाते हैं । इससे उनकी लीला को भी सब साधारण प्राणी नहीं जान सकते । टीलाजी के उक्त प्रकार के वचन सुनकर सब को प्रसन्नता हुई । फिर उस समय माधवकाणी ने भी सभी संतों के हाथों में लौंग देखे । किसी के हाथ में ५, किसी के हाथ में ६ और किसी के हाथ में ७ लौंग थे ।
.
तब माधवकाणी ने दादूजी से पूछा - हे सर्व पर उपकार करने वाले स्वामिन् ! लौंग तो चार ही मुट्ठी थे और प्रसाद लेने वाला समुदाय बहुत अधिक था फिर भी मैंने अच्छी प्रकार देखा है, सब के हाथों में लौंगों का प्रसाद है । किसी के हाथ में ५, किसी के हाथ में ६, और किसी के हाथ में ७, लौंग देखने में आई हैं । इसका क्या रहस्य है ? आप कृपा करके बतायें ।
.
माधवकाणी की जिज्ञासा देख कर परमदयालु दादूजी ने कहा - अन्तर्यामी परमात्मा ने कृपा की है और जैसा जिसका भाव था वैसा ही उस को प्रसाद दिया है अर्थात् भाव भावुकों के अनुसार होता है । भावुक तीन प्रकार के होते हैं । इसमें उत्तम भाव वालों को ७, माध्यम वालों को ६, और कनिष्ट भाव वालों को ५ लौंग प्राप्त हुई हैं । भाव की विचित्रता तो लोक में प्रसिद्ध ही है, तुम भी तो जानते ही हो । दादू जी महाराज का उक्त वचन सुनकर माधवकाणी संतुष्ट हो गये ।
(क्रमशः)
🌷🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-२)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
.
*= विन्दु ७३ =*
*= लौंग प्रसाद का रहस्य =*
.
टौंक महोत्सव में आये हुये सभी संत समाज का कहना था - अनादि ब्रह्म ही दादूजी के रूप में प्रकट हुये हैं । इसी से सबने दादूजी के करकमलों से प्रसाद लेना चाहा था । उन सब संतात्माओं का सच्चा स्नेह देखकर ही दीनदयालु दादूजी के मन में दया आगई थी ।
.
इसीसे उन्होंने अनेक शरीर धारण कर के संतों के भावानुसार लौंग का प्रसाद सब को एक साथ ही दे दिया था । समर्थ प्रभु जो करना चाहते हैं, उसे कर ही देते हैं । उन अविगत(मन इन्द्रियों के अविषय) परमात्मा की लीला को अज्ञानी कोई भी नहीं जान सकता ।
.
उसको प्राप्त करने वाले संत भी उसीके रूप हो जाते हैं । इससे उनकी लीला को भी सब साधारण प्राणी नहीं जान सकते । टीलाजी के उक्त प्रकार के वचन सुनकर सब को प्रसन्नता हुई । फिर उस समय माधवकाणी ने भी सभी संतों के हाथों में लौंग देखे । किसी के हाथ में ५, किसी के हाथ में ६ और किसी के हाथ में ७ लौंग थे ।
.
तब माधवकाणी ने दादूजी से पूछा - हे सर्व पर उपकार करने वाले स्वामिन् ! लौंग तो चार ही मुट्ठी थे और प्रसाद लेने वाला समुदाय बहुत अधिक था फिर भी मैंने अच्छी प्रकार देखा है, सब के हाथों में लौंगों का प्रसाद है । किसी के हाथ में ५, किसी के हाथ में ६, और किसी के हाथ में ७, लौंग देखने में आई हैं । इसका क्या रहस्य है ? आप कृपा करके बतायें ।
.
माधवकाणी की जिज्ञासा देख कर परमदयालु दादूजी ने कहा - अन्तर्यामी परमात्मा ने कृपा की है और जैसा जिसका भाव था वैसा ही उस को प्रसाद दिया है अर्थात् भाव भावुकों के अनुसार होता है । भावुक तीन प्रकार के होते हैं । इसमें उत्तम भाव वालों को ७, माध्यम वालों को ६, और कनिष्ट भाव वालों को ५ लौंग प्राप्त हुई हैं । भाव की विचित्रता तो लोक में प्रसिद्ध ही है, तुम भी तो जानते ही हो । दादू जी महाराज का उक्त वचन सुनकर माधवकाणी संतुष्ट हो गये ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें