शनिवार, 23 अप्रैल 2016

= ज्ञानसमुद्र(च. उ. ७) =

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🌷🙏🇮🇳 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🇮🇳🙏🌷
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स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली 
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान, 
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ चर्तुथ उल्लास =*
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*श्री गुरुरुवाच ~ छप्पय*
*पुरुष प्रकृति संयोग जगत उपजत हैं ऐसैं ।* 
*रवि दप्पर्ण दृष्टांत अग्नि उपजत है तैसैं ॥*
*सुई होंहिं चेतन्य यथा चुम्बक कै संगा ।* 
*यथा पवन संयोग उदधि महिं उठहिं तरंगा ॥*
*अरु यथा सूर संयोग पुनि, चक्षु रुप कौं ग्रहत हैं ।* 
*यौं जड चेतन संयोग ते, सृष्टि उपजती कहत१ हैं ॥७॥*
{१-विशेष ‘‘सांख्यकारिका’’ और ‘‘सांख्यसूत्र’’ में त्रिविध(सत्व, रज, तम) गुणों से त्रिविध सृष्टि की प्रक्रिया खोल कर नहीं दी है । यह ग्रन्थों को छाया से यथा ‘‘सांख्यतत्त्वकौमुदी’’ (वाचस्पतिकी टीका) और ‘‘पंचीकरण’’ या वेदान्त के किसी ग्रन्थ  के सहारे से लिखा प्रतीत होता है । मूला प्रकृति(प्रधान) की शुद्ध अवस्था जब रहती है तब उसमें तीनों गुण भी समान(साम्यावस्था वाले) होते हैं । जब सृष्टि बनना प्रारम्भ हो तब प्रकृति से महत्तत्व, महत्तत्व से अहंकार, फिर अहंकार से पांच तन्मात्रा(शब्दस्पर्शादि के तत्त्व) तथा मन और पाँचों ज्ञानेन्द्रिय और पाँचों कर्मेंन्द्रिय और पंचतन्मात्राओं से पाँचों महाभूत (पृथ्वी-जलादि) उत्पन्न होते हैं । प्रकृति अनादि और सृष्टि का उपादान कारण है । पुरुष अनादि और निमित्त कारण । कूटस्थ अकर्ता । यह सांख्य का मूल सिद्धांत है ।}
(गुरुदेव उत्तर देते हैं-) जगत् की सृष्टि पुरुष-प्रकृति संयोग से होती है । (एक के उदासीन रहने पर भी दोनों का संयोग कैसे हो जाता है ? - इसमें उदाहरण देते हैं-) जैसे रवि(सूर्य) और दर्पण(=सीसा) के संयोग से अग्नि उत्पन्न हो जाती है । (दूसरा उदाहरण देते हैं-) सूई(जड पदार्थ) में चुम्बक के संयोग से चेतनता आ जाती है । (तीसरा उदाहरण देते हैं-) जैसे पवन(वायु) के संयोग से समुद्र(के जल) में तरंगें उठती रहती हैं । (चौथा उदाहरण देते हैं-) (रुप के साथ) सूर्यप्रकाश के संयोग से चक्षुरिन्द्रिय रुप को ग्रहण करती है, उसी तरह (सांख्यसिद्धांत में) जड-चेतन के संयोग से सृष्टि का उद्भव माना गया है ॥७॥
(क्रमशः)

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