शनिवार, 23 अप्रैल 2016

= ५९ =

卐 सत्यराम सा 卐
तन मन इन्द्रिय वशीकरण ऐसा सद्गुरु शूर |
शंक न आने जगत की, हरि सों सदा हजूर ||
समदृष्टी शीतल सदा, अदभुत जाकी चाल |
ऐसा सतगुरु कीजिये, पल में करे निहाल ||
तौ करै निहालं, अद्भुत चालं, भया निरालं तजि जालं । 
सो पिवै पियालं, अधिक रसालं, ऐसा हालं यह ख्यालं ॥ 
पुनि बृद्ध न बालं, कर्म न कालं, भागै सालं चतुराशी । 
दादू गुरु आया, शब्द सुनाया, ब्रह्म बताया अविनाशी ॥
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साभार ~ Krishnacharandas Aurobindo
वही जानत जेही देहु जनाई।
जानत तुमही तुमही हौ जाही।।
नारायण, ब्रह्म, परमात्मा एकही हैं। जो सविकल्प समाधि के द्वारा ज्ञान, भक्ति निष्काम कर्मयोग, तन्त्र या कोई भी योग के अनुष्ठान द्वारा अनहद चक्र में स्थित भगवान या गुरु या अंगुष्ठमात्र पुरुष या अपने स्वरूप को जानता हैं वह भूत(अतीत) भव्य(होनेवाला)और भवत्(वर्तमान) तीनों कालों का ज्ञाता हो जाता हैं.... स्वामी हो जाता है..... सबका अन्तर्यामी आत्मा भी वही है.... ऐसा महात्मा गुरु कहलाने के योग्य हैं.... और गुरुतत्त्व एक होने से सब गुरु तत्त्वतः एक ही है। उसके स्वतंत्र लोक का निर्माण भी तभी हो जाता है जहाँ वो अपने भक्तों को ले जा सकता है।
सद्गुरु वे हैं जो परब्रह्म के साथ सहस्त्रार चक्र में स्थिति प्राप्त कर निर्विकल्प समाधि प्राप्त कर सर्वत्र व्याप्त निर्गुण तत्त्व को जानकर वही बन जाते हैं... उनको जीवन मुक्ति या कैवल्य प्राप्त हो वे आवागमन के चक्र से मुक्त हो जाते हैं.... देहपात के बाद चाहे तो वे अपना लोक बना सकते(आकाश में स्थित तारे जीवन मुक्त महापुरुषों के लोक हैं।) या मुक्त विचरण कर सकते हैं.!! चाहे जिस लोक में रह सकते हैं।
नारायण ही जगद्गुरु हैं या जिन्हों ने नारायण को परमात्मा को जानकर माया के चँगुल से मुक्त होकर नारायण के साथ एक हो गये वे जगद्गुरु कहलाने के योग्य हैं। वे नहीँ जो केवल वेद-शास्त्रों के ज्ञाता हैं...!! लेकिन इस घोर कलिकाल में जगद्गुरुओं की जैसे बाढ़ आयी है।
कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्।

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