सोमवार, 6 जून 2016

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卐 सत्यराम सा 卐
सांई दीया दत घणां, तिसका वार न पार ।
दादू पाया राम धन, भाव भक्ति दीदार ॥ 
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साभार ~ दिव्य प्रेम 
पारसमणि 
रवीन्द्र ठाकुर की एक बड़ी ही सीख देने वाली रचना है। एक आदमी को रात में सपने में भगवान् दिखाई दिये। उन्होंने उससे कहा कि जाओ, आमुक जगह पर एक साधु रहता है, उससे मिलो और उसके पास हीरा है, उसे ले लो। उस आदमी को लगा, भगवान की बात सही हो सकी है। सो अगले दिन उसने सबेरे उठकर उनके बताये स्थान पर साधु की खोज की। संयोग से साधु मिल गये। उसने उन्हें सपने में भगवान् के दर्शन देने और उनसे मिलकर हीरा लेने की बात बतायी। साधु ने कहा-"हाँ ठीक है। जाओ, वहाँ नदी-किनारे पेड़ के नीचे हीरा पड़ा है, उसे ले लो।" आदमी वहाँ गया और उसके अचरज का ठिकाना न रहा, जब उसने देखा कि पेड़ के नीचे सचमुच बड़ा कीमती हीरा पड़ा है। उसने हीरे को उठा लिया। खुशी से उसका दिल नाचने लगा।
अचानक उस आदमी के मन में एक विचार पैदा हुआ। साधु ने इसे यों ही क्यों डाल रखा है? जरूर उसके पास इस हीरे से भी मूल्यवान् कोई चीज़ है, जिसने ऐसी अनमोल चीज़ को मिट्टी के मोल बना दिया हैं यह हीरा तो आज है, कल नहीं। मुझे वही चीज़ प्राप्त करनी चाहिए, जो हीरे को भी ठीकरा कर देती है। इतना सोच उसने हीरे को नदी में फेंक दिया और साधू के पास चला गया।
यह घटना कवि के दिमाग की कोरी कल्पना नहीं है, इसमें बहुत बड़ी सच्चाई है। जिसके पास धन से भी कीमती कोई दूसरी चीज़ होती है, उसे धन फीका लगता है। किसी बुद्धिमान ने ठीक ही लिखा है, "जिसके पास केवल धन है, उससे बढ़कर ग़रीब और कोई नहीं है।" ऊँचे दर्जे के एक आदमी ने कितनी बढ़िया बात कहीं है, "मुझसे धनी कोई नहीं है, क्योंकि मैं सिवा भगवान् के और किसी का दास नहीं हूँ।"

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