बुधवार, 28 सितंबर 2016

= सर्वंगयोगप्रदीपिका (च.उ. ७-८) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*सर्वांगयोगप्रदीपिका(ग्रंथ२)*
**सांख्ययोग नामक = चतुर्थ उपदेश =**
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*संकल्पै अरु बिकलप करै ।*
*मन सौं लक्षण एसौं धरै ।* 
*बुद्धि सु लक्षण बोध हिं जाँनी ।*
*नीकौ बुरौं लेइ पहिचांनी ॥७॥* 
जो अन्तःकरण संकल्प-विकल्प करता है उसे ‘मन’ कहते हैं । जिस अन्तःकरण से किसी वस्तु का बोध(ज्ञान) होता है उसे ‘बुद्धि’ कहते हैं । वह भले-बुरे का बोध(पहचान) कराती है ॥७॥ 
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*= सूक्ष्म-स्थूल देह =*
*चैतन लक्षण चित्त अनूपा ।*
*अहंकार अभिमान स्वरूपा ।* 
*नौ तत्वनि कौ लिंग शरीरा ।*
*पंद्रह तत्व स्थूल गंभीरा ॥८॥* 
तृतीय अन्तःकरण चित्त का लक्षण(चिन्ह) है अनुपम चैतन्य । और चौथे अहंकार अन्तःकरण का चिन्ह है अहंकार । तात्पर्य यह है कि इन चारों अन्तःकरणों का उपर्युक्त चिन्हों से पृथक् पृथक् भेद किया जा सकता है । (अब उस सृष्टि के बारे में कुछ और विस्तार से सुनिये -) ऊपर बतायी पाँच तन्मात्राओं तथा चार अन्तःकरणों(नौ तत्वों) से सूक्ष्म शरीर का निर्माण होता है । और पाँच महाभूत, पाँच ज्ञानेन्द्रिय, पाँच कर्मेन्द्रिय - इन पन्द्रह तत्वों से स्थूल शरीर का निर्माण होता है ॥८॥
(क्रमशः)

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