बुधवार, 28 सितंबर 2016

= विन्दु (२)८५ =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
**श्री दादू चरितामृत(भाग-२)** लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥

**= विन्दु ८५ =**

**= जगराम को उपदेश =**
किरड़ोली में एक दिन किरड़ोला जाट जगराम दादूजी के दर्शन करने आया और प्रणाम करके कुछ सुनने की इच्छा से हाथ जोड़कर दादूजी के सामने बैठ गया । दादूजी ने उसके मन की भावना जानकार उसके अधिकार के अनुसार इस पद से उसको उपदेश दिया -
"जियरा काहे रे मूढ डोले, 
वन वासी लाला पुकारे, तुहीं तुहीं कर बोले ॥ टेक ॥
साथ सवारी ले न गयो रे, चालण लागो बोले । 
तब जाय जियरा जाणेगो रे, बांधे ही कोइ खोले ॥ १ ॥ 
तिल तिल मांहीं चेत चली रे, पंथ हमारा तोले । 
गहला दादू कछू न जाने, राख लेहु मेरे मोले ॥ २ ॥ 
सावधान कर रहे हैं - अरे मूढ जीव ! वन की चिड़िया भी "तुहीं तुहीं" बोलकर भगवान् को पुकारती है फिर तू भगवान् का चिन्तन छोड़-कर विषयों में क्यों भटक रहा है ? कोई भी साथ में अश्वादि सवारी नहीं ले गया है, स्वयं जाने वाला ही बोलता है - "मेरे साथ कुछ भी नहीं जा रहा है, मैं खाली हाथ जा रहा हूँ ।" जब तू भी यमदूतों के हाथ जायगा, तब जानेगा वह क्लेश कैसा होता है । वे तुझे अपनी पाश में बाँधकर ले जायेंगे, तब कोई भी नहीं खुला सकेगा । अतः सावधान होकर क्षण - क्षण में अपने हित का विचार करते हुये हमारे भगवद् भजन रूप मार्ग में चल । हे मेरे परमेश्वर ! यह जीव अनजान है और मैं इसे आप में निरंतर स्थापन कर सकूँ, ऐसा साधन कुछ भी नहीं जानता हूँ । अतः आप ही इसको अपने स्वरूप में स्थिर रखने की कृपा करिये । 
उक्त उपदेश को सुनकर जगराम का मन परमात्मा की और लगने लगा फिर शनैः शनैः अभ्यास से उक्त पद के उपदेशानुसार उसने अपना जीवन बना लिया ।
(क्रमशः)

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