बुधवार, 28 सितंबर 2016

= परिचय का अंग =(४/९७/९९)

॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
**श्री दादू अनुभव वाणी** टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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**= परिचय का अँग ४ =**
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नैन हमारे नूर१ मा२, तहां रहे ल्यौ लाइ ।
दादू उस दीदार३ को, निशदिन निरखत जाइ ॥९७॥
उस समाधि अवस्था में हमारे विवेक विचार - नेत्र प्रकाशमय ब्रह्म स्वरूप के बीच२ में ही लगे रहते हैं और मन भी वहां ही अपनी वृत्ति लगावे रहता है । हमारे सभी रात्रि - दिन उस अपने आत्म - स्वरूप ब्रह्म के दर्शन३ करते - करते ही व्यतीत होते हैं ।
नैनहुं आगे देखिये, आतम अंतर सोइ ।
तेज पुंज सब भर रह्या, झिलमिल झिलमिल होइ ॥९८॥
वह ब्रह्म अपने भीतर ही है । तुम सँसार दशा से आगे समाधि अवस्था में जाकर अपने ज्ञान - नेत्रों से देखो, तुम्हें अवश्य वहां झिलमिल - झिलमिल होता हुआ वह प्रकाश रूप ब्रह्म दीखेगा । हमने समाधि अवस्था में उस तेज - पुँज ब्रह्म को सँपूर्ण विश्व में परिपूर्ण रूप से देखा है ।
अनहद बाजे बाजिये, अमरापुरी निवास ।
ज्योति स्वरूपी जगमगे, कोई निरखे निज दास ॥९९॥
समाधि अवस्था में मृत्यु नहीं मार सकती, अत: समाधि स्थिति ही अमरापुरी निवास है । प्रथम जब अनाहत बाजे बजने लगते हैं, तब ही अमरापुरी में निवास होता है । उस समाधि अमरापुरी में ज्योति स्वरूप ब्रह्म का प्रकाश जगमगाता है किन्तु उसको कोई समाधि - स्थिति को प्राप्त भगवान् का निजी भक्त ही देख सकता है, सब नहीं ।
(क्रमशः)

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