सोमवार, 19 सितंबर 2016

= परिचय का अंग =(४/८२-४)

॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
**श्री दादू अनुभव वाणी** टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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**= परिचय का अँग ४ =**
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पति पहचान
दादू पाणी माँहैं पैसि कर, देखे दृष्टि उघार ।
जलाबिम्ब सब भर रह्या, ऐसा ब्रह्म विचार ॥८२॥
ब्रह्म पहचान की युक्ति बता रहे हैं - जैसे जल में गोता लगाकर नेत्र खोल के देखने से सर्वत्र जल ही जल भरा दृष्टि आता है, वैसे ही ब्रह्म विचार द्वारा अन्त:करण की वृत्ति को ब्रह्म में लीन करने पर सर्वत्र परिपूर्ण ब्रह्म ही ब्रह्म भासता है । अकबर बादशाह ने प्रश्न किया था, ज्ञान द्वारा ब्रह्म भासने में कोई दृष्टाँत बताइये ? उसका उत्तर इस साखी से दिया था । प्रसंग कथा - दृ - सु - सिं - त - १२/२५ में देखो।
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परिचय पतिव्रत
सदा लीन आनन्द में, सहज रूप सब ठौर ।
दादू देखे एक को, दूजा नाँही और ॥८३॥
८४ - ९१ में साक्षात्कार सम्बन्धी पतिव्रत दिखा रहे हैं - विश्व के सभी स्थलों में माया रहित सहज स्वरूप ब्रह्म स्थित है । हम सदा आन्तर वृत्ति से उसी के आनन्द में निमग्न रहे हैं और बाह्य दृष्टि से भी सर्वत्र सब वस्तुओं में उसी को सत्य रूप से देखते हैं, अन्य कोई भी हमें सत्य नहीं भासता ।
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दादू जहं तहं साथी संग है, मेरे सदा अनन्द ।
नैन बैन हिरदै रहे, पूरण परमानन्द ॥८४॥
घरादि स्थलों में, जाग्रतादि अवस्थाओं में तथा सर्व देश काल में जहां तहां व्यापक होने से, मेरे साथी प्रभु - दर्शन रूप से नेत्रों में, नाम रूप से वाणी में, स्मरण रूप से हृदय में, इस प्रकार पूर्ण परमानन्द स्वरूप ब्रह्म निरन्तर मेरे साथ ही रहते हैं । इसीलिये मुझे सदा आनन्द का ही अनुभव होता रहता है ।
(क्रमशः)

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