गुरुवार, 22 सितंबर 2016

= सर्वंगयोगप्रदीपिका (तृ.उ. ४९-५०) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*सर्वांगयोगप्रदीपिका(ग्रंथ२)*
**अथ हठयोग नामक - तृतीय उपदेश**
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*समाधि(८) -*
*अब समाधि ऐसी बिधि करई ।*
*जैसैं लौन नीर महिं गरई ।* 
*मन इन्द्री की वृत्य समावै ।*
*ताकौ नाम समाधि कहावै ॥४९॥* 
अब ध्यान की पूर्ण साधना के बाद योगी को समाधि का अभ्यास करना चाहिये । इसकी विधि यह है कि जैसे पानी में नमक मिला देने पर नमक जलाकार(जलमय) हो जाता है अपनी कोई स्वतन्त्र स्थिति नहीं रखता; उसी तरह योगी को ध्यान के द्वारा अपने चित्त की वृत्तियों को ब्रह्म में तदाकार(तन्मय) बना देना चाहिये-इसी को समाधि’ कहते हैं ॥४९॥
*जीवातम परमातम दोई ।*
*सम रस करि जब एकै होई ।* 
*बिसरै आप कछु नहिं जानै ।*
*ताको नाम समाधि बखानै ॥५०॥*
इस जीवात्मा और परमात्मा दोनों मिलकर एक हो जायँ, अपने अपने स्वत्वाभिमान को त्याग दें - इस स्थिति को ‘समाधि’ कहते हैं ॥५०॥
(क्रमशः)

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