गुरुवार, 29 सितंबर 2016

=१८=

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दुहि दुहि पीवै ग्वाल गुरु, सिष है छेली गाइ ।
यह औसर योंही गया, दादू कहि समझाइ ॥
दादू कहै, सो गुरु किस काम का, गहि भ्रमावै आन ।
तत्त बतावै निर्मला, सो गुरु साध सुजान ॥ 
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साभार ~ गुंजेश त्रिपाठी 
एक राजा ने दरबार में सुबह ही सुबह दरबारियों को बुलाया । उसका दरबार भरता ही जा रहा था की एक अजनबी यात्री वहां आया । 
वह किसी दूर देश का रहने वाला होगा । उसके वस्त्र पहचाने हुए से नहीं मालूम पड़ते थे । उसकी शक्ल भी अपरिचित थी, लेकिन वह बड़े गरिमाशाली और गौरवशाली व्यक्तित्व का धनी मालूम होता था । सारे दरबार के लोग उसकी तरफ देखते ही रह गए । उसने एक बड़ी शानदार पगड़ी पहन रखी थी । वैसी पगड़ी उस देश में कभी नहीं देखी गयी थी । वह रंग–बिरंगी छापेदार थी । ऊपर चमकदार चीजें लगी थी । राजा ने पूछा–अतिथि ! क्या मैं पूछ सकता हूँ की यह पगड़ी कितनी महंगी है और कहाँ से खरीदी गयी है ? 
उस आदमी ने कहा – यह बहुत महंगी पगड़ी है । एक हजार स्वर्ण मुद्रा मुझे खर्च करनी पड़ी है । वजीर राजा की बगल में बैठा था और वजीर स्वभावतः चालाक होते हैं, नहीं तो उन्हें कौन वजीर बनाएगा ? 
उस अतिथि ने भी उस वजीर को, जो राजा के कान में कुछ कह रहा था, उसके चेहरे से पहचान लिया । वह अतिथि भी कोई नौसिखिया नहीं था । उसने भी बहूत दरबार देखे थे और बहूत दरबारों में वजीर और राजा देखे थे । वजीर ने जैसे ही अपना मुँह राजा की कान से हटाया, वह नवांगतुक बोला–फिर क्या मैं लौट जाऊं ? मुझे कहा गया था की इस पगड़ी को खरीदने वाला सारी धरती पर एक ही सम्राट है । एक ही राजा है । क्या मैं लौट जाऊ इस दरबार से और मैं समझूँ कि यह दरबार वह दरबार नहीं है ? जिसकी की मैं खोज में हूँ ? मैं कहीं और जाऊं ? 
उसने राजा के कान में कहा–सावधान ! यह पगड़ी बीस–पच्चीस चांदी के सिक्कों से ज्यादा की नहीं मालूम पड़ती । यह हजार स्वर्ण मुद्रा बता रहा है । इसका लूटने का इरादा है । मैं बहुत से दरबारों से वापस आया हूँ । मुझे कहा गया है कि एक ही राजा है इस ज़मीन पर, जो पगड़ी को एक हजार स्वर्ण मुद्राओं में खरीद सकता है । तो क्या मैं लौट जाऊं ? क्या यह दरबार वह दरबार नहीं है ? 
उन्हीं कमजोरियों का शोषण चल रहा है । आदमी बहुत कमजोर है और बड़ी कमजोरियाँ है उसमें । आज धर्म के नाम पर सबसे बड़ा शोषण हो रहा है उसकी कमजोरियों का शोषण हो रहा है । राजा ने कहा दो हजार स्वर्ण मुद्रा दो और पगड़ी खरीद लो । वजीर बहुत हैरान हुआ । 
जब वजीर चलने लगा तो उस आए हुए अतिथि ने वजीर के कान में कहा–मित्र ! तुम जानते हो की पगड़ी के दाम कितने है, लेकिन मैं राजाओं की कमजोरियां जानता हूँ । "यही सब हम लोगों के साथ भी होता है चाहे हम किसी भी धर्म के मानने पूजने वाले हों । पादरी, पुरोहित, मौलवी और धर्मगुरु ईश्वर को तो नहीं जानते जानते हैं तो सिर्फ हम इंसानों की कमजोरियों को जानते है और यही उनसे खतरा है।"

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