गुरुवार, 29 सितंबर 2016

=१७=

卐 सत्यराम सा 卐
दादू सब ही गुरु किए, पशु पंखी बनराइ ।
तीन लोक गुण पंच सौं, सबही मांहिं खुद आइ ॥ 
जे पहली सतगुरु कह्या, सो नैनहुँ देख्या आइ ।
अरस परस मिलि एक रस, दादू रहे समाइ ॥ 
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साभार ~ Madhusudan Murari
किसी संत के एक शिष्य ने अपने गुरु से एक प्रश्न पूछा गुरुदेव आपके गुरु कौन हैं?
गुरु ने उत्तर दिया- 
मेरे हजारों गुरु हैं। यदि मैं उनके नाम गिनाने बैठ जाऊ तो शायद महीनों लग जाए। लेकिन फिर भी मैं अपने तीन गुरुओ के बारे में तुम्हे जरुर बताऊंगा। एक था चोर। एक बार मैं रास्ता भटक गया था और जब दूर किसी गाव में पंहुचा तो बहुत देर हो गयी थी। सब दुकानें और घर बंद हो चुके थे। लेकिन आख़िरकार मुझे एक आदमी मिला जो एक दीवार में सेंध लगाने की कोशिश कर रहा था। मैने उससे पूछा कि मै कहाँ ठहर सकता हूं, तो वह बोला कि आधी रात गए इस समय आपको कहीं आसरा मिलना बहुत मुश्किल होगा, लेकिन आप चाहें तो मेरे साथ ठहर सकते हो। मैं एक चोर हूँ और अगर एक चोर के साथ रहने में आपको कोई परेशानी न हो तो आप मेरे साथ रह सकते हैं।
“वह इतना प्यारा व्यक्ति था कि मैं उसके साथ एक महीने तक रहा वह हर रात मुझे कहता कि मैं अपने काम पर जाता हूं, आप आराम करो, प्रार्थना करो। जब वह काम से आता तो मैं उससे पूछता की कुछ मिला तुम्हें? तो वह कहता की आज तो कुछ नहीं मिला पर अगर भगवान ने चाहा तो जल्द ही जरुर कुछ मिलेगा।
वह कभी निराश या उदास नहीं होता था, हमेशा मस्त रहता था। जब मुझे ध्यान करते हुए सालों-साल बीत गए थे और कुछ भी हो नहीं रहा था तो कई बार ऐसे क्षण आते थे कि मैं बिलकुल हताश और निराश होकर साधना-वाधना छोड़ लेने की ठान लेता था। और तब अचानक मुझे उस चोर की याद आती जो रोज कहता था कि भगवान ने चाहा तो जल्द ही कुछ जरुर मिलेगा। 

और मेरा दूसरा गुरु एक कुत्ता था। एक बहुत गर्मी वाले दिन मैं बहुत प्यासा था और पानी की तलाश में घूम रहा था कि एक कुत्ता दौड़ता हुआ आया।
वह भी प्यासा था। पास ही एक नदी थी। उस कुत्ते ने आगे जाकर नदी में झांका तो उसे एक और कुत्ता पानी में नजर आया जो की उसकी अपनी परछाई थी। कुत्ता उसे देख बहुत डर गया। वह परछाई को देखकर भौंकता और पीछे हट जाता, लेकिन बहुत प्यास लगने के कारण वह वापस पानी के पास लौट आता। अंततः अपने डर के बावजूद वह नदी में कूद पड़ा और उसके कूदते ही वह परछाई भी गायब हो गई। उस कुत्ते के इस साहस को देख मुझे एक बहुत बड़ी सीख मिल गई। अपने डर के बावजूद व्यक्ति को छलांग लगा लेनी होती है। सफलता उसे ही मिलती है जो व्यक्ति डर का साहस से मुकाबला करता है।

और मेरा तीसरा गुरु एक छोटा बच्चा है। मैं एक गांव से गुजर रहा था कि मैंने देखा एक छोटा बच्चा एक जलती हुई मोमबत्ती ले जा रहा था। वह पास के किसी गिरजाघर में मोमबत्ती रखने जा रहा था। मजाक में ही मैंने उससे पूछा की क्या यह मोमबत्ती तुमने जलाई है ?
वह बोला, जी मैंने ही जलाई है। तो मैंने उससे कहा कि एक क्षण था जब यह मोमबत्ती बुझी हुई थी और फिर एक क्षण आया जब यह मोमबत्ती जल गई। क्या तुम मुझे वह स्त्रोत दिखा सकते हो जहाँ से वह ज्योति आई?
वह बच्चा हँसा और मोमबत्ती को फूंख मारकर बुझाते हुए बोला, अब आपने ज्योति को जाते हुए देखा है। कहाँ गई वह ? आप ही मुझे बताइए?
“मेरा अहंकार चकनाचूर हो गया, मेरा ज्ञान जाता रहा। और उस क्षण मुझे अपनी ही मूढ़ता का एहसास हुआ। तब से मैंने कोरे ज्ञान से हाथ धो लिए।

मित्रों, शिष्य होने का अर्थ है पुरे अस्तित्व के प्रति खुले होना। मस्तिष्क से नहीं बल्कि हृदय से खुले होना। हर समय हर ओर से सीखने को तैयार रहना। जीवन का हर क्षण, हमें कुछ न कुछ सीखने का मौका देता है। हमें जीवन में हमेशा एक शिष्य बनकर अच्छी बातों को सीखते रहना चाहिए। यह जीवन हमें आये दिन किसी न किसी रूप में किसी गुरु से मिलाता रहता है, यह हम पर निर्भर करता है कि क्या हम उस संत की तरह एक शिष्य बनकर उस गुरुतत्व से मिलने वाली शिक्षा को ग्रहण कर पा रहे हैं या नहीं?

शुभ दिवस...जय श्री राम मित्रोँ!!!

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