मंगलवार, 20 सितंबर 2016

= विन्दु (२)८५ =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
**श्री दादू चरितामृत(भाग-२)** लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥

**= विन्दु ८५ =**

**= रामत प्रसंग =**
बूंली से पुनः घाटवे पधारे । महन्त चेतनजी घाटवा में चातुर्मास करना भी लिखा है । घाटवे में ही प्रयागदासजी आगये थे और कुछ दिन निवास करके प्रयागदासजी ने दादूजी महाराज को अपने ग्राम किरड़ोली में पधारने की प्रार्थना की । दादूजी महाराज ने इनकी प्रार्थना मान ली । प्रयागदासजी बियाणी गोत्र के माहेश्वरी महाजन थे और सांभर में आकर दादूजी के शिष्य हो गये थे । सांभर में इन्होंने दादूजी की बहुत सेवा की थी और भक्ति भाव से दीक्षा ली थी । इनके शिष्य होने की कथा विन्दु ११ में पहले आ गई है । प्रयागदासजी दादूजी महाराज को लेकर किरड़ोली जा रहे थे तब शाहपुरा के तिलोकशाह माहेश्वरी ने सुना कि इधर से दादूजी महाराज किरड़ोली पधार रहे है तब वह मार्ग में जाकर दादूजी से मिला । कारण उसको गुरुदेव दादूजी के दर्शन की बहुत इच्छा थी तिलोकशाह ने मार्ग में जाकर दादूजी को दंडवत की और हाथ जोड़कर सच्चे प्रेम से प्रार्थना की - आप मेरे घर को पवित्र करके ही आगे पधारें, मैं आपको पहले नहीं जाने दूंगा । उसके प्रेम को देखकर दादूजी उसके ग्राम शाहपुरा जाने को सहमत हो गये । 

**= शाहपुरे पधारना =**
शाहपुरा से एक कोस आगे चले गये थे किंतु तिलोकशाह वहाँ से पीछा लौटाकर शाहपुरे ले आया और बहुत प्रकार से गुरुदेव दादूजी की सेवा की । वहाँ पर दादूजी महाराज के दर्शन, प्रवचन, संतों के संकीर्तन आदि से भाई गोकुलदास, तिलोकशाह, उसके परिवार और ग्राम निवासियों का भाव बहुत बढ़ गया था । सभी ने ज्ञान, ध्यान, भक्ति आदि रस का सप्रेम आस्वादन किया था फिर एक दिन तिलोकशाह ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की - स्वामिन् ! जो आपको प्रिय है और जिस की मुझे आज्ञा देंगे मैं उसी साधन की साधना करता रहूँगा । अतः आप कृपा कर के मुझे बताइये मैं कौन सा साधन निर्विघ्न कर सकता हूँ । 
(क्रमशः)

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