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॥ दादूराम सत्यराम ॥
**श्री दादू चरितामृत(भाग-२)** लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
**= विन्दु ८५ =**
**= भरता जाट को उपदेश =**
एक दिन किरड़ोली में किरड़ोला भरता जाट सत्संग के समाप्त होने पर दादूजी से कुछ विशेष रूप से अपने हित का उपदेश सुनने की इच्छा से बैठा ही रहा । तब दादूजी ने उसके मन का भाव जानकर उसके अधिकार के अनुसार उसको इस पद से उपदेश दिया -
"जियरा मेरे सुमरि सार,
काम क्रोध मद तज विकार ॥ टेक ॥
तू जनि भूले मन गँवार,
शिर भार न लीजे मान हार ॥ १ ॥
सुन समझायो बार बार,
अजहूं न चेतै हो हुसियार ॥ २ ॥
कर तैसे भव तिरिये पार,
दादू अब तैं यही विचार ॥ ३ ॥"
कल्याणप्रद उपदेश दे रहे हैं - हे मेरे प्रिय जीव ! काम, क्रोध, मद आदि विकारों को त्यागकर विश्व के सार परब्रह्म का स्मरण कर । हे मूर्ख ! तू मन से प्रभो को मत भूल, स्मरण करने में हार मानकर, अपने शिर पर पापों का भार मत ले । अरे ! कुछ सुन तो सही, मैंने तुझे बारंबार समझाया है, फिर भी तू अभी तक सचेत नहीं हो रहा है, शीघ्र सावधान होलर अभी से ऐसे विचार और ऐसे ही कार्य कर जिनसे संसार समुद्र से पार हो सके । उक्त उपदश सुनकर भरता के जीवन में परिवर्तन हो गया । वह अब प्रत्येक कार्य के साथ - साथ प्रभु का भजन मन से करने लगा । उक्त प्रकार किरड़ोली में संतदास मारू, चतुरदास संगरावटिया, जगराम, भरता, चार शिष्य दादूजी के हुये और प्रयागदासजी पहले ही शिष्य थे । किरड़ोली में अच्छा सत्संग होता रहा ।
इति श्री दादूचरितामृत विन्दु ८५ समाप्तः
(क्रमशः)
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