गुरुवार, 29 सितंबर 2016

= सर्वंगयोगप्रदीपिका (च.उ. ९-१०) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*सर्वांगयोगप्रदीपिका(ग्रंथ२)*
**सांख्ययोग नामक = चतुर्थ उपदेश =**
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*क्षेत्रज्ञविचार* 
*ये चौबीस तत्व बंधानं ।*
*भिन्न भिन्न करि कियौ बखानं ।* 
*सब कौ प्रेरक कहिये जीवा ।*
*सो क्षेत्रज्ञ निरन्तर शीवा ॥९॥*
यों, इन चौबीस तत्वों के संयोग से होने वाले विभिन्न कार्यों का वर्णन कर दिया है । इन चौबीसों का प्रेरक तत्व है - पुरुष । इसे ‘जीव’ भी कहते हैं, ‘क्षेत्रज्ञ’ भी कहते हैं ॥९॥ 
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*सकल वियापक अरु सवँगा ।*
*दीसै संगी आहि असंगा ।* 
*साक्षी रूप सबनि तें न्यारा ।*
*ताहि कछू नहिं लिपै विकारा ॥१०॥* 
यह नित्य है, अविनाशी है, शिवस्वरूप है । सर्वव्यापी है सर्वज्ञ है, जगत् में रह कर भी इससे अलग है । असंग है, साक्षीरूप है, सबसे पृथक् है । निर्लिप्त है, (रागद्वेषरहित) है ॥१०॥
(क्रमशः)

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