शनिवार, 17 सितंबर 2016

= विन्दु (२)८५ =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
**श्री दादू चरितामृत(भाग-२)** लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥

**= विन्दु ८५ =**

**= लाडखान को उपदेश =** 
स्मरण का फल बता रहे हैं - निर्गुण राम में वृत्ति लगाकर स्थिर रहने से साधक शनैः शनैः वृत्ति द्वारा जाकर हरि से मिलता है । संसार - सिन्धु के दुःख रूप जल से लिपायमान नहीं होता । हरि में मन रहने से कुकर्म नहीं होता । इससे कुकर्म का फल कोई भी पाप आकर हृदय में नहीं लगता । जिसमें दैहिक, दैविक और भौतिक इन तीन तापों से हृदय नहीं जलता, वह पद अनायास ही प्राप्त होता है । योनि द्वारा जन्म, और जरावस्था को प्राप्त नहीं होता । उस भक्त के हृदय में मायिक मोह नहीं लगता । पंच विषय जन्य दुःख मन को नहीं होता । हमने सर्व प्रकार सब कुछ खोज लिया है, इस संसार में परम सुख का उत्तम उपाय तो यह हरि स्मरण ही है । इसके करने वाले प्राणी के मन कभी संकट और संशय में नहीं पड़ता । वह अपने नेत्रों से नरक नहीं देखता । उसे कभी काल नहीं खाता । उसके हृदय में विक्षेप और पाप रूप काई नहीं रहती । भय और भ्रम भाग जाते हैं । अतः सब प्रकार से उस एक प्रभु में ही ऐसी दृढ़ वृत्ति लगाओ, जिससे सहज समाधि होकर उसका दर्शन हो जाय । दृढ़ता से जिसका नाम ग्रहण करके, जिसमें लग जाता है, वही हृदय में आ जाता है । यह नियम ही है । जैसे कीट भृंगी बन जाता है, वैसे ही भक्त हरि बन जाता है । फिर दोनों एक रूप ही दिखाई देते हैं । 
लाडखानजी की इच्छा थी कि स्मरण का फल क्या होता है, वही दादूजी ने बताकर लाडखानजी को कृत - कृत्य कर दिया । लाडखान रायसिल के पुत्र थे । रायसिल के १२ पुत्र थे उनमें लाडखानजी दादूजी के परम भक्त रहे और आगे भी लाडखानजी का वंश लाडखानि दादूजी का भक्त रहता आया था । 
(क्रमशः)

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