शनिवार, 17 सितंबर 2016

= सर्वंगयोगप्रदीपिका (तृ.उ. ३९-४१) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*सर्वांगयोगप्रदीपिका(ग्रंथ२)*
**अथ हठयोग नामक - तृतीय उपदेश**
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*प्राणायाम(४)*
*प्राणायाम करै बिधि ऐसी ।*
*सतगुरु संधि बतावै जैसी ।* 
*इडा नाडि करि पूरै बांई ।*
*रेचक करै पिंगला जाई ॥३९॥*
इसके बाद अपने सद्गुरु की बतायी । विधि से प्राणायाम-क्रिया की साधना करनी चाहिये । उस प्राणायाम की संक्षिप्त विधि यह है - पहले बाँयी इड़ा नाड़ी से श्वास को खींचना चाहिये, फिर पिंगला नाड़ी से उसका रेचन करना चाहिये ॥३९॥
*पूरि पिंगला इड़ा निकारै ।*
*द्वादश वार मन्त्र विधि धारै ।* 
*द्विगुण त्रिगुण करि प्राणायामं ।*
*उत्तम मध्यम कनिष्ट नामं ॥४०॥* 
बाद में इसके विपरीत, पिंगला से श्वास को खींचना चाहिये, और इड़ा से निकालना चाहिये । इसी बीच१२ बार बीजमन्त्र(ॐ) का उच्चारण हो सके इतने समय तक उसे रोकना चाहिये । आगे चल कर इसी विधि को द्विगुण फिर त्रिगुण तक बढ़ा देना चाहिये । इस तरह इस प्रथम एकगुण पद्धति को कनिष्ठ, द्विगुण को मध्यम तथा त्रिगुण को उत्तम कहा गया है ॥४०॥
*कुंभक अष्ट भांति के जानैं ।**मुद्रा पंच प्रकार सु ठानैं ।*
*जैसैं तीनि नीकी बिधि लावै ।**और भेद सद्गुरु तें पावैं ॥४१॥*
स्वास रोकने की क्रिया को कुम्भक कहते हैं । वह आठ प्रकार का है । मुद्राएँ महाबन्ध आदि पाँच प्रकार की हैं । बन्ध तीन प्रकार के हैं ।(इन सब का पीछे ज्ञानसमुद्र के तृतीय उल्लास में वर्णन हो चुका है।) इन सब का, सद्गुरु ने जैसा बताया हो तद्नुसार, अभ्यास करना चाहिये ॥४१॥
(क्रमशः)

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