सोमवार, 19 सितंबर 2016

श्री दादूवाणी/पद ४१२ से ४१३

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
**राग राग जैतश्री २७(पद ४१२ से ४१३)**
स्वर ~ स्वामी श्री भगवानदास जी तपस्वी, निवाई, राजस्थान यह अनुपम प्रसादी _/\_ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज _/\_ की कृपा से प्राप्त हुई है ।

**अथ राग जैतश्री २७**
(गायन समय दिन ३ से ६)
४१२. अमिट नाम विनती । पंजाबी त्रिताल
तेरे नाम की बलि जाऊँ, जहाँ रहूँ जिस ठाऊँ ॥ टेक ॥
तेरे बैनों की बलिहारी, तेरे नैनहुँ ऊपरि वारी ।
तेरी मूरति की बलि कीती, वारि-वारि हौं दीती ॥ १ ॥
शोभित नूर तुम्हारा, सुन्दर ज्योति उजारा ।
मीठा प्राण पियारा, तूँ है पीव हमारा ॥ २ ॥
तेज तुम्हारा कहिये, निर्मल काहे न लहिये ।
दादू बलि बलि तेरे, आव पिया तूँ मेरे ॥ ३ ॥

४१३. विरह विनती । पंजाबी त्रिताल
मेरे जीव की जानै जानराइ, तुमतैं सेवक कहा दुराइ ॥ टेक ॥
जल बिन जैसे जाइ जिय तलफत, तुम्ह बिन तैसे हमहु विहाइ ॥ १ ॥
तन मन व्याकुल होइ विरहनी, दरश पियासी प्राण जाइ ॥ २ ॥
जैसे चित्त चकोर चंद मन, ऐसे मोहन हमहि आहि ॥ ३ ॥
विरह अगनि दहत दादू को, दर्शन परसन तनहि सिराइ ॥ ४ ॥
इति राग जैत श्री सम्पूर्ण ॥ २७ ॥ पद २ 

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