सोमवार, 19 सितंबर 2016

= सर्वंगयोगप्रदीपिका (तृ.उ. ४२-३) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*सर्वांगयोगप्रदीपिका(ग्रंथ२)*
**अथ हठयोग नामक - तृतीय उपदेश**
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*प्रत्याहार(५)* 
*प्रत्याहार पकरि मन राखै ।*
*बिखै स्वाद कबहूँ नहिं चाखै ।* 
*जैसैं कूरम सकुचै अंगा ।*
*ऐसैं इन्द्री राखै संगा ॥४२॥*
फिर प्रत्याहार के द्वारा भी चित्तवृत्तिनिरोध का अभ्यास करना चाहिये । विषयरस(कामोपभोग) का आस्वादन योगी को कभी नहीं करना चाहिये । जैसे कछुआ अपने अंगों को समेटे रखता है, ऐसे योगी अपनी इन्द्रियों को समेटे रखे । उन पर निग्रह रखे ॥४२॥ 
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*धारणा(६)* 
*पंच धारणा२ तत्व प्रकाशा ।*
*पृथि अप तेज वायु आकाशा ।* 
*अक्षर सहित देवतनि ध्यावै ।*
*पंच पंच घटिका लय लावै ॥४३॥*
(२. पंच धारणा - पांचों तत्वों की धारणा का वर्णन भी ‘ज्ञानसमुद्र’ ६४ पर है । और यहाँ भी संक्षेप से है ।) योगी तत्वज्ञान का प्रकाश कराने वाली पृथ्वीतत्वधारणा, जलतत्वधारणा, तेजस्तत्वधारणा, वायुतत्वधारणा एवं आकाशतत्वधारणा - इन पाँच धारणाओं का, इन के देवताओं तथा विशिष्ट अक्षरों के साथ ध्यान का अभ्यास करते हुये कम से कम पाँच पाँच घड़ी तक चित्त को इन धारणाओं में लगाये रखें ॥४३॥ 
(क्रमशः)

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