शनिवार, 1 अक्तूबर 2016

= विन्दु (२)८६ =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
**श्री दादू चरितामृत(भाग-२)** लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥

**= विन्दु ८६ =**

**= गोपालदास माहेश्वरी को उपदेश =** 
एक दिन गोपालदास माहेश्वरी दादूजी को प्रणाम करके हाथ जोड़े हुये कुछ जिज्ञासा लेकर दादूजी के सामने बैठे थे । दादूजी ने उनका मन का भाव जान कर उनके अधिकार के अनुसार उपदेश करने को यह पद बोला -
"सजनी रजनी घटती जाय । 
पलपल छीजे अवधि दिन आवे, 
अपनी लाल मनाय ॥ टेक ॥ 
अति गति नींद कहा सुख सोवे, यहु अवसर चल जाय । 
यहु तन बिछुरे बहुर कहं पावे, पीछे ही पछताय ॥ १ ॥ 
प्राण पति जागे सुनदरि क्यों सोवे, उठ आतुर गह पाय । 
कोमल वचन करुणा कर आगे, नख शिख रहु लपटाय ॥ २ ॥ 
सखी सुहाग सेज सुख पावे, प्रीतम प्रेम बढ़ाय । 
दादू भाग बड़े पिव पावे, सकल शिरोमणि राय ॥ ३ ॥" 
अपनी वृत्ति को निमित्त बनाकर गोपालदास को उपदेश कर रहे हैं - अरी मेरी बुद्धि रूप सजनी ! आयु रात्रि पल - पल क्षीण होती हुई घटती जा रही है और उसके समाप्ति का दिन समीप आ रहा है । तू शीघ्र ही अपने प्रीतम प्रभु को प्रसन्न कर, तुझे बहुत चलना है, अज्ञान निद्रा में अति सुख पूर्वक क्यों सो रही है ? इस प्रकार सोने से यह सुअवसर हाथ से चला जायगा । यह मानव शरीर है, इसमें यदि भगवान् से अलग रही तो फिर किस शरीर में प्रभु को प्राप्त करेगी ? पीछे तो पश्चात्ताप ही करना होगा । प्राणेश्वर परमात्मा तो भक्तों के लिये सदा जाग्रत ही रहते हैं । फिर भी, हे मेरी बुद्धि सुन्दरी ! तू क्यों अज्ञान निद्रा में सो रही है ? शीघ्रता से उठकर प्रभु के चरण पकड़ । नम्र और करुणा पूर्ण वचनों द्वारा प्रभु के आगे विनय कर तथा नख से शिखा पर्यन्त शरीर को प्रभु परायण कर । हे सखि ! प्रियतम से प्रेम बढ़ा, तभी हृदय शय्या पर सुहाग - सुख प्राप्त कर सकेगी । जिनके भाग्य महान् होते हैं, वे ही सर्व शिरोमणि विश्व के राजा भगवान् को प्राप्त करते हैं, अन्य नहीं । उक्त पद को सुनकर गोपालदास की बुद्धि वृत्ति में भी भगवत् प्रेम जाग्रत हुआ फिर उसकी बुद्धि भगवद् संबन्धी विचार करने लगी और मन भी परमात्मा के नामों का मनन करने लगा । संतों के संग का प्रभाव ऐसा ही होता है । 
(क्रमशः)

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