शनिवार, 1 अक्तूबर 2016

= सर्वंगयोगप्रदीपिका (च.उ. १३-१४) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*सर्वांगयोगप्रदीपिका(ग्रंथ२)*
**सांख्ययोग नामक = चतुर्थ उपदेश =**

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(१३ से२३ छन्द तक ज्ञानयोग का अतिसंक्षेप से वर्णन है । इस प्रकार का वर्णन “ज्ञानसमुद्र” में भी आया है । श्रीसुन्दरदासजी ने ज्ञानयोग, ब्रह्मयोग और अद्वैतयोग नाम के तीन प्रकरणों को भी सांख्य के उपदेश ही में वर्णित किया है । इनमें से ज्ञानयोग का सम्बन्ध कुछ न्याय और कुछ उपनिषदों के वेदान्त से मिलता है । सांख्य ईश्वर को कारण नहीं बताता, न सृष्टि का लय पुरुष में ही मानता है । “ज्ञानसमुद्र” में श्रीस्वामीजी ने ऐसा वर्णन अद्वैत के पंचम उल्लास में अभावों के निरूपणों में दरसाया है । वह वहां देखने से समझा जा सकता है । यह ज्ञानयोग का जो स्वामी ने वर्णन किया है वह अत्यन्त सच्चा और परम उत्कृष्ट ज्ञान है । ‘आतामा विश्व है सोई’(छन्द१८) ‘यों आतमां विश्व नहिं दोई’(छन्द२१) ‘कारण आतम आहि अखण्डा’ कारय भयो सकल ब्रह्मण्डा’(छन्द१३) इत्यादि ‘सर्व खल्विदं ब्रह्म नेह नानास्ति किंचन’ इत्यादि उपनिषदों के मन्त्रों के अनुसार परम सत्य ज्ञान का प्रकाशक है - इसमें कुछ संदेह नहीं है ।)
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*ज्ञानयोग वर्णन(२) *
*= कारण-कार्यविवेक = चौपई =*
*ज्ञानयोग अब एसैं जानैं ।*
*कारण अरु कारय पहिचानैं ।*
*कारण आतम आहि अखंडा ।*
*कारय भयौ सकल ब्रह्माण्डा ॥१३॥*
इस ज्ञानयोगप्रकरण में यह सिद्धान्त निरुपित हुआ है कि आत्मा कारण है, और विश्व कार्य है । अर्थात् यह सृष्टि आत्ममय है, आत्मा से ही इसका विकास और उसी में इसका लय हो जाता है । महाराजश्री ने अनेक उदाहरण दिये हैं, जिनसे आत्मा और विश्व का अभेद भलीभाँति समझ में आ जाता है । और आत्मा विश्व का निमित्त तथा उपादान कारण है । अब ज्ञानयोग समझने की विधि बताता हूँ, सुनो ! ज्ञानयोग के समझने से पहले इस सृष्टि के कारण-कार्य को खूब अच्छी तरह समझ लेना चाहिये । इस सृष्टिरूपी कार्य का कारण है अखण्ड(अविनाशी) आत्मा, और यह ब्रह्माण्डरूपी समग्र सृष्टि उस आत्मा का कार्य है ॥१३॥
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*बीजांकुर का उदाहरण*
*ज्यौं अंकुरु तें तरु विस्तारा ।*
*बहुत भाँति करि निकसी डारा ।*
*शाखा पत्र और फरफूला ।*
*यौं आतमा विश्व कौ मूला ॥१४॥*
जैसे बीज के अंकुर से बहुत बड़ा वृक्ष बन जाता है, उसकी बड़ी-बड़ी डालें, स्कन्ध-प्रस्कन्ध उसी बीज से निकलते हैं उसी से शाखायें, पत्ते, फूल-फल सब निकलते हैं । सब के मूल में वही आदिकारण बीज है । इसी तरह इस समय सृष्टि का मूल कारण आत्मा है ॥१४॥
(क्रमशः)

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