शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

= परिचय का अंग =(४/१३३-५)


॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
**श्री दादू अनुभव वाणी** टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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**= परिचय का अँग ४ =** 
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*अरवाह मकाम हस्त१३ (तरीक़त)*
इश्क१ इबादत२ बँदगी३, यगानगी४ इखलास५ ।
महर६ मुहब्बत७ खैर८ खूबी९, नाम१० नेकी११ खास१२॥१३३॥
अत्यन्त प्रेम१ से ईश्वर उपासना२ सेवाभाव३, एकात्म भाव रूप एकता४, सब से मित्रता५, दीनों पर दया६, सँतों में प्रेम७, प्राप्त परिस्थिति में आनन्द८, दैवीगुण विशिष्टता९, आत्म चिन्तन१०, परोपकारिता११, यही मुख्य१२ लक्षण मुमुक्षु में रहते हैं१३ ।
*माबूद मकाम हस्त (हकीकत)*
यके१ नूर२ खूब३ खूबाँ, दीदनी४ हैरान५ ।
अजब६ चीज७ खुरदनी८, पियालए९ मस्तान१०॥१३४॥
अद्वितीय१ प्रकाश२ स्वरूप, श्रेष्ठों३ से भी अति श्रेष्ठ, दर्शनीय४ ब्रह्म को देखकर, आश्चर्य५ युक्त हुये, इस अद्भुत६ ब्रह्म वस्तु७ रूप भोजन८ का अभेद चिन्तन रूप आस्वादन करते हैं और उस ब्रह्म के प्रेम - रस को मन - प्याले९ से पान करके मस्त१० हो रहे हैं । यही ब्रह्मविदों के लक्षण हैं ।
हैवान१ आलम२ गुमराह३ ग़ाफिल४, अव्वल५ शरीयत पँद६ ।
हलाल७ हराम८ नेकी बदी, दर्से९ दानिशमँद१०॥१३५॥
उक्त प्रश्नों का उत्तर देकर, अकबर बादशाह को विशेष रूप से समझाने के लिये १३५ - १३९ से मुसलमान धर्म की चार अवस्थाओं का वर्णन कर रहे हैं - १३५ में शरीअत नामक प्रथमावस्था का परिचय दे रहे हैं - सँसार२ में प्राणी विषय - विष के प्रभाव से अचेत४ हुये, भगवान् के मार्ग३ को भूलकर, नाना योनियों में पशु१ के समान भटक रहे हैं । अत: बुद्धिमान्१० को चाहिये - उन्हें धार्मिक ग्रँथ पढ़ाकर९ अथवा उपदेश६ देते हुये उनसे बुरे८ कर्म और पर निन्दादि बुराइयाँ छुड़ाकर, अच्छे७ कर्म और परोपकारादि भलाइयाँ कराते हुये उनको शरीअत नामक प्रथमावस्था५ में स्थापन करें । हराम और बदी को छोड़कर नेकी पर रहना ही "शरीअत" अवस्था है ।
(क्रमशः)

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