शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

=३८=

卐 सत्यराम सा 卐
दादू आपा जब लगै, तब लग दूजा होइ ।
जब यहु आपा मिट गया, तब दूजा नाहीं कोइ ॥ 
दादू मैं नाहीं तब एक है, मैं आई तब दोइ ।
मैं तैं पड़दा मिट गया, तब ज्यूं था त्यूं ही होइ ॥ 
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साभार ~ Madhusudan Murari 

॥अहंकार॥

छुद्र में विराट अहंकार के कारण दृष्टिगोचर नहीं होता। वस्तुत: विराट ही छुद्र का रचयिता है।
छुद्र पग दो पग चलता है जबकि विराट स्वयं ही मार्ग मंजिल और यात्री। किंतु छुद्र इस सत्य से अनभिज्ञ अतृप्त। सनातन विशालता को अहंकार अवरुद्ध किये रहता है। जो नहीं है वो होने का अवश्य ही दावा करता है। जबकि जो है वह इशारे भर करता है।
जैसे यदि मन की खिड़की खुली हो तो हवा का झोंका या आकाश में चमकती बिजली आदि काफी होते हैं इस अहसास के लिए।
परम सत्य है कि जब तक कुछ होने का अहंकार शेष है सनातन से एकाकार नहीं हुआ जा सकता। 
(जय श्री राम बंधुओँ)

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