रविवार, 16 अक्तूबर 2016

= परिचय का अंग =(४/१३६-८)

॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
**श्री दादू अनुभव वाणी** टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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**= परिचय का अँग ४ =** 
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कुल१ फारिग़२ तर्क३ दुनियाँ, हररोज४ हरदम५ याद ।
अल्लह६ आली७ इश्क८ आशिक९, दरूने१० फरियाद११॥१३६॥
१३६ में तरीकत नामक दूसरी अवस्था को बता रहे हैं - साँसारिक सँपूर्ण१ भोग - वासनाओं को त्याग३ कर निश्चिन्त२ हुआ प्रतिदिन४ ही प्रतिश्वास५ में ईश्वर६ का स्मरण करता रहता है । अखिल विश्व के श्रेष्ठों में भी अति श्रेष्ठ७ ईश्वर के अत्यन्त प्रेम८ का प्रेमी९ बना रहता है, ईश्वर प्रेम में किंचित् भी कमी नहीं आने देता और प्रभु के दर्शनार्थ हृदय१० से पुकार११ करता रहता है । यही दूसरी शुद्धाचरण रूप "तरीकत" अवस्था है ।
(मारफत)
आब१ आतश२ अर्श३ कुर्सी४, सूरते५ सुबहान६ ।
शरर७ सिफ़त८ करद९ बूद,१० मारफ़त मक़ाम११॥१३७॥
१३७ में तीसरी मारफत अवस्था का परिचय दे रहे हैं - जल१, अग्नि२, आकाश३, और पृथ्वी४ ये सब उस परम पवित्र६ परमात्मा के रूप५ हैं । उस परमात्म रूप अग्नि की चिनगारी७ के समान रहते हुये जो परमात्मा के गुण - गान८ करता९ है१०, उसकी उक्त अध्यात्म स्थिति११ ही तीसरी "मारफत" अवस्था कहलाती है ।
हक़१ हासिल२ नूर३ दीदम४, करारे५ मकसूद६ ।
दीदार७ दरिया८ अरवाहे९, आमद१०, मौजूदे११, मौजूद ॥१३८॥
१३८ में हकीकत नामक चतुर्थावस्था का परिचय दे रहे हैं - जिस अवस्था में मन में साधन का यथार्थ फल आता१० है तब प्रकाश३ स्वरूप ईश्वर१ का दर्शन४ प्राप्त२ करके गर्भ की प्रतिज्ञा५ और साधन का अभिप्राय६ पूर्ण कर लेता है तथा आत्माएं९ ब्रह्म८ का साक्षात्कार७ करके उसमें अभेद११ हो जाती है । वही यथार्थ तत्व प्राप्ति रूप चतुर्थ "हकीकत" अवस्था कहलाती है ।
(क्रमशः)

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