शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

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卐 सत्यराम सा 卐
यहु जग जाता देखकर, दादू करी पुकार ।
घड़ी महूरत चालनां, राखै सिरजनहार ॥ ५१ ॥
दादू विषै सुख मांहि खेलतां, काल पहुँच्या आइ ।
उपजै विनशै देखतां, यहु जग यों ही जाइ ॥ 
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साभार ~ मेरे प्रभु
नानक एक गांव मे ठहरे हूए थे लाहोर के पास वंहा एक धनवान व्यक्ति ने जाकर उनसे कहा मेरे पास बहुत संपत्ति है । उसका मुझे सदुपयोग करना है आप कोई मार्ग बताये आप कोई मोका दे मैं उसका उपयोग कर सकूं । नानक ने उसकी तरफ देखा और कहा तुम बहुत दरिद्र हो तुम्हारे पास संपत्ति कहा ? उस व्यक्ति ने कहा शायद आप परिचित नहीं हैं । आज्ञा दे तो मैं बतलाऊं कि कितनी संपत्ति मेरे पास है । जो भी काम हो वह मैं करके दिखाऊं ।
नानक ने उसे एक छोटी कपडा सीने की सुई दी और कहा इसे मरने के बाद मुझे वापस लोटा देना । अपनी सारी संपत्ति का उपयोग करना और यह सुई मुझे मरने के बाद लोटा देना । वह आदमी हैरान हुआ वह लौटा उसने रात भर सोचा । मित्रों को पूछा कि क्या कोई रास्ता हो सकता है कि सुई को मैं मृत्यु के पार ले जाऊं ? लोगों ने कहा यह तो असंभव है । इस जगत की सारी संपत्ति मिल कर भी एक सुई को उस पार नहीँ ले जा सकते । और कैसे भी मुठ्ठी बांधी जाए मुठ्ठी इस पार ही छुट जायेगी ओर कोई भी उपाय किए जाए मृत्यु के सामने सब व्यर्थ हो जाएंगे।
वह रात को चार बजे अंधेरे में लौटा । उसने नानक को सुई वापस कर दी और कहा मुझे क्षमा करें । इसे वापस ले ले मेरी संपत्ति इसे मृत्यु के उस तरफ ले जानेमे समर्थ नहीं है नानक ने कहा अगर एक सुई मृत्यु के उस तरफ नहीं जाती तो फिर तुम्हारे पास क्या है जो उस पार जा सकेगा ? और ऐसा कुछ भी नहीं है तो अपने को दरिद्र जानना ।
संपत्तिशाली केवल वे ही हैं जिनके पास मृत्यु के पार कुछ ले जाने को है ।
जो भी मापा जा सकता है वह मौत के पार नहीं ले जाया सकता। जो अमाप है वही केवल मौत के पार जाता है और जिसने अमाप को खोज लिया वह मृत्यु का विजेता हो गया जो मापा जा सकता है वह मिटेगा वह आज है कल खो जायेगा हिमालय जैसे पहाड भी खो जायेंगे जहां तक माप जाता है वहां तक सभी अस्थिर है जहां तक माप जाता है वंहा तक लहरें है जंहा माप छूट जाता है सीमायें खो जाती है वहीं से ब्रम्ह का प्रारंभ है

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