शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

= विन्दु (२)८६ =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
**श्री दादू चरितामृत(भाग-२)** लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥

**= विन्दु ८६ =**

खोजीजी अपने भक्तों से परामर्श करके मेला का दिन निश्चित करके अपने मंडल के ग्रामों के चारों ओर के संत और भक्तों को निमंत्रण भेजने के लिये एक पत्र तैयार किया । उसमें लिखा - यह मेला संत प्रवर दादूजी के पालड़ी के उपलब्ध में किया जा रहा है । इसमें सभी संत तथा भक्तों को संतों के दर्शन और सत्संग से लाभ उठाना चाहिये । जो संत तथा भक्त मेले के मुख्य दिन से पहले भी सत्संग का लाभ उठाना चाहे उन्हें संकोच त्याग कर अवश्य पधारना चाहिये । यहां उनको कोई भी प्रकार का कष्ट नहीं होने दिया जायगा । जो जितना भी सत्संग का लाभ उठाये उतना ही अच्छा है । ऐसा अवसर बारबार नहीं मिलता है । यह तो भगवद् कृपा से भाग्यवश मिल गया है, इसको प्रमादवश नहीं खोना चाहिये । सांसारिक काम तो सदा ही लगे रहते हैं, उनका अंत न होकर शरीर का ही अन्त एक दिन हो जायगा । अतः किसी सांसारिक कार्य को निमित्त बनाकर यह अवसर कभी नहीं गमाना चाहिये । दादूजी जैसे संतों के दर्शन और सत्संग भाग्य से प्राप्त होते हैं । अतः मेरा नम्र निवेदन है कि आप लोग अधिक लाभ उठा सकते हैं । तब तो आपको धन्यवाद है और नहीं उठा सकें तो मेले के दिन समिष्ट भंडारे में तो अवश्य ही पधारें । 
उक्त निमंत्रण पत्र को अनेक कापियां करा - करा कर शीघ्र गामी घुड़सवारों द्वारा आसपास मंडलों के ग्रामों में भिजवा दी । इधर पालड़ी में मेले की बहुत अच्छी तैयारी की गई । आसपास के विरक्त संत दादूजी का नाम सुनकर मेले के दिन से पहले ही पालड़ी में आ गये और दादूजी का सत्संग करने लगे । सत्संग के समय से अन्य समय में खोजीजी की दादूजी से ज्ञान गोष्टी भी होती थी । इन गोष्टी का संकेत जनगोपालजी ने इस प्रकार दिया है -
"अरस परस साधू मिले, अनुभव तीरथ नाहि ।" 
खोजीजी आदि संतों के मिलने पर वे संत दादूजी के अनुभव तीर्थ में स्नान करने लगे । 
(क्रमशः)

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