शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

= परिचय का अंग =(४/१३०-२)

॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
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**श्री दादू अनुभव वाणी** टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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**= परिचय का अँग ४ =** 
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ब्रह्म शून्य तहं ब्रह्म है, निरंजन निराकार ।
नूर तेज तहं ज्योति है, दादू देखणहार ॥१३०॥
जहां समाधि अवस्था में मायादिक विकार - शून्य ब्राह्मी स्थिति प्राप्त होती है, वहां ही निरंजन, निराकार, प्रकाशस्वरूप ब्रह्म का साक्षात्कार होता है और वहां ब्राह्मी स्थिति प्राप्त पुरुष की आत्मज्योति ब्रह्म प्रकाश में लीन हो जाती है, आत्मा परमात्मा का अभेद हो जाता है, तब वह ब्राह्मी स्थिति को प्राप्त पुरुष दृष्टा होकर रहता है । क्रिया, कर्मादि से उसका कोई सम्बन्ध नहीं रहता । यही विकार - शून्य ब्रह्म प्राप्त पुरुष का लक्षण है । वीरबल से प्रश्नोत्तर सीकरी में हुये थे ।
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प्रश्न - 
मौजूद१ खबर२ माबूद३ खबर, अरवाह४ खबर वजूद५ ।
मकाम६ चे७ चीज हस्त१०, दादनी८ सजूद९ ॥१३१॥
१३१ में अकबर बादशाह के प्रतिलोम क्रम से प्रश्न हैं - स्वामिन् ! आपको परमार्थ के सभी विषयों का पूर्ण ज्ञान२ उपस्थित१ है, अत: मैं विनय९ करता हूं - ब्रह्म३ ज्ञान प्राप्त होने की स्थिति६ के समय ज्ञानी में आत्मानात्मा४ विवेक होने पर मुमुक्षुता की स्थिति के समय मुमुक्षु में, और देहाध्यास की स्थिति के समय देहाध्यासी५ में क्या७ क्या वस्तुयें रहती है१०, उनमें कैसे लक्षण वर्तते हैं ? इन प्रश्नों का उत्तर कृपा करके दें८ ।
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उत्तर - वजूद मक़ाम हस्त(शरीअत)
नफ्स१ गालिब२ किब्र३ काबिज४, गुस्स:५ मनी६ एस्त७ ।
दूई८ दरोग९ हिर्स१० हुज्जत११, नाम१२, नेकी१३ नेस्त १४ ॥१३२॥
१३२ - १३४ में अनुलोम क्रम से अकबर बाहशाह के प्रश्नों का उत्तर दे रहे हैं - जिसमें विषय - वासना१ की प्रबलता२, घमण्ड३, क्रोध५, काम६, भेदभावना८, मिथ्या९ भोगों का लालच१०, झगड़ा११, ये दृढ़४ रूप से रहते हैं७ । ईश्वर - नामस्मरण१२ और भलाई१३ नहीं१४ रहती, यही देहाध्यासी पुरुष के लक्षण हैं ।
(क्रमशः)

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