मंगलवार, 18 अक्तूबर 2016

= विन्दु (२)८६ =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
**श्री दादू चरितामृत(भाग-२)** लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥

**= विन्दु ८६ =**

**= संतों का प्रश्न और दादूजी का उत्तर =**
पालड़ी में एक दिन संत सभा में कुछ संतों ने दादूजी से प्रश्न किया - स्वामिन् ! हम भी चाहते हैं कि आप के समान ही हमारी भी स्थिति हो जाय, निरंतर मन प्रभु में ही लगा रहे, संसार में नहीं जाय । अतः आप कृपा करके बतायें आपकी यह स्थिति कैसे हुई थी ? संतों का उक्त प्रश्न सुनकर संत प्रवर दादूजीने यह पद बोला -
"संतों राम बाण मोहि लागे, 
मारत मिरग मरम तब पायो, सब संगी मिल जागे ॥ टेक ॥ 
चित चेतन चिन्तामणि चीन्हा, उलट अपूठा आया । 
मंदिर पैसि बहुर नहिं निकसे, परम तत्त्व घर पाया ॥ १ ॥ 
आवे न जाय जाय नहिं आवे, तिहिं रस मनवा भाता । 
पान करत परमानंद पाया, थकित भया चल जाता ॥ २ ॥ 
भयो अपंग पंक नहिं लागे, निर्मल संग सहाई । 
पूरण ब्रह्म अखिल अविनाशी, तिहिं तज अनत न जाई ॥ ३ ॥ 
सो शर लाग प्रेम परकाशा, प्रकटी प्रीतम वाणी । 
दादू दीन दयाल हि जाने, सुख में सुरति समाणी ॥ ४ ॥" 
हे संतों ! सद्गुरु के द्वारा चलाये हुये राम संबन्धी शब्द बाण मेरे लगे हैं । सद्गुरु ने शब्द बाण से जब मेरे मन - मृग को मारा, तब मुझे परमार्थ का रहस्य मिला । फिर तो इन्द्रिय रूप सभी साथी भी उस रहस्य से मिलकर विषयासक्ति रूप निद्रा से जाग गये हैं । चित्त ने चेतन - चिन्तामणि को पहचाना तब विषयों से प्रसन्न न हो उन से लौट आया तथा हृदय मंदिर में प्रविष्ट होकर फिर नहीं निकलता, कारण, परम तत्त्वरूप अपने घर को प्राप्त कर लिया है । मन ने ब्रह्म चिन्तन रूप रस पान करते - करते परमानन्द प्राप्त कर लिया है । अब उसी में मस्त है । विषय सुख की आशा द्वारा एक विषय पर आकर दूसरे पर जाना और जाकर आना रुक गया है । पहले बारंबार चला जाता था किन्तु अब थक गया है । आशा रूप पैरों से रहित हो गया है, अब इसके पापरूप कीचड़ नहीं लगता है । निर्मल ब्रह्म के साथ रहता है और वह इसका सहायक है । अब तो यह सर्वात्मा अविनाशी पूर्ण ब्रह्म को त्यागकर अन्य पर जाता ही नहीं है । उस सद्गुरु शब्द बाण के लगने से हृदय में प्रभु - प्रेम प्रकट हुआ है और प्रियतम प्रभु सबन्धी अनुभववाणी प्रकट हुई है । अब एक - मात्र दीन दयालु प्रभु को ही अपना जानता है और उसी सुख स्वरूप ब्रह्म में मन वृत्ति समाई रहती है । 
(क्रमशः)

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