शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

= सर्वंगयोगप्रदीपिका (च.उ. ३१/३२) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*सर्वांगयोगप्रदीपिका(ग्रंथ२)*
**ज्ञानयोग नामक = चतुर्थ उपदेश =** 
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*अहं निरंजन अहं अपारा ।*
*अहं निरामय अरु निरकारा ।* 
*अहं नीलेप अहं निज रूपं ।*
*निर्गुण अहं अहं सु अनूपं ॥३१॥*
मैं निरंजन(निराकार) हूँ, मेरा कोई पार नहीं पा सकता, मैं निर्दोष, निर्विकार और निराकार हूँ । मैं तो निर्लेप हूँ, निज-स्वरूप हूँ, निर्गुण हूँ । मेरे समान दूसरा इस ब्रह्माण्ड में कोई नहीं है ॥३१॥
*अहं सुखरूप अहं सुखराशी ।*
*अहं सु अजर अमर अविनाशी ।* 
*अहं अनन्त अहं अद्वीता ।*
*अहं सु अज अव्ययं अभीता ॥३२॥*
मैं एकान्ततः सुखस्वरूप हूँ, मैं सुखराशी हूँ, मेरा दुःख से कोई वास्ता नहीं है; क्योंकि मैं अजर हूँ, अमर हूँ, अविनाशी(नित्य = शाश्वत) हूँ । मेरा कोई अन्त नहीं है, मुझमें कोई द्वैतभाव नहीं है, मैं अजन्मा हूँ, अव्यय(अनश्वर) हूँ, अभय हूँ ॥३२॥ 
(क्रमशः)

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