शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

=३९=

卐 सत्यराम सा 卐
माया विषय विकार तैं, मेरा मन भागे ।
सोई कीजे साँईयाँ, तूँ मीठा लागे ॥ 
साँई दीजे सो रति, तूँ मीठा लागे ।
दूजा खारा होइ सब, सूता जीव जागे ॥ 
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साभार ~ गुंजेश त्रिपाठी

एक किसान के घर एक दिन उसका कोई परिचित मिलने आया, उस समय वह घर पर नहीं था । 

उसकी पत्नी ने कहा - 'वह खेत पर गए हैं, मैं बच्चे को बुलाने के लिए भेजती हूं । तब तक आप प्रतीक्षा करें ।' कुछ ही देर में किसान खेत से अपने घर आ पहुंचा । उसके साथ-साथ उसका पालतू कुत्ता भी आया । कुत्ता जोरों से हांफ रहा था । 

उसकी यह हालत देख, मिलने आए व्यक्ति ने किसान से पूछा - 'क्या तुम्हारा खेत बहुत दूर है ?'

किसान ने कहा - 'नहीं, पास ही है । लेकिन आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं ?' 

उस व्यक्ति ने कहा - 'मुझे यह देखकर आश्चर्य हो रहा है कि तुम और तुम्हारा कुत्ता दोनों साथ-साथ आए, लेकिन तुम्हारे चेहरे पर रंच मात्र थकान नहीं जबकि कुत्ता बुरी तरह से हांफ रहा है ।' 

किसान ने कहा - 'मैं और कुत्ता एक ही रास्ते से घर आए हैं । मेरा खेत भी कोई खास दूर नहीं है । मैं थका नहीं हूं । मेरा कुत्ता थक गया है । इसका कारण यह है कि मैं सीधे रास्ते से चलकर घर आया हूं, मगर कुत्ता अपनी आदत से मजबूर है । वह आसपास दूसरे कुत्ते देखकर उनको भगाने के लिए उसके पीछे दौड़ता था और भौंकता हुआ वापस मेरे पास आ जाता था । फिर जैसे ही उसे और कोई कुत्ता नजर आता, वह उसके पीछे दौड़ने लगता । अपनी आदत के अनुसार उसका यह क्रम रास्ते भर जारी रहा । इसलिए वह थक गया है ।' 

देखा जाए तो यही स्थिति आज के मानव की भी है । जीवन के लक्ष्य तक पहुंचना यूं तो कठिन नहीं है, लेकिन लोभ, मोह अहंकार और ईर्ष्या जीव को उसके जीवन की सीधी और सरल राह से भटका रही है । अपनी क्षमता के अनुसार जिसके पास जितना है, उससे वह संतुष्ट नहीं, आज लखपति, कल करोड़पति, फिर अरबपति बनने की चाह में उलझकर इंसान दौड़ रहा है । अनेक लोग ऐसे हैं जिनके पास सब कुछ है । भरा-पूरा परिवार, कोठी, बंगला, एक से एक बढ़िया कारें, क्या कुछ नहीं है । फिर भी उनमें बहुत से दुखी रहते हैं । 

बड़ा आदमी बनना, धनवान बनना बुरी बात नहीं, बनना चाहिए। यह हसरत सबकी रहती है । उसके लिए स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होगी तो थकान नहीं होगी । लेकिन दूसरों के सामने खुद को बड़ा दिखाने की चाह के चलते आदमी राह से भटक रहा है और यह भटकाव ही इंसान को थका रहा है । यह लक्ष्य प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा है । जीवन के सही लक्ष्य को पाने को मिली ऊर्जा को आज का मानव व्यर्थ करता जा रहा है । मोह, लोभ, अहंकार और ईर्ष्या से बचकर लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में सीधे-सीधे आगे बढ़ते रहे तो फिर एक दिन उसे मंजिल मिल ही जाएगी । लेकिन इनके चक्कर में पड़ेगा तो वह थक ही जाएगा ।

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