मंगलवार, 11 अक्तूबर 2016

=३६=

卐 सत्यराम सा 卐
दादू केई जाले केई जालिये, केई जालण जांहि ।
केई जालन की करैं, दादू जीवन नांहि ॥ 
दादू कहै-उठ रे प्राणी जाग जीव, अपना सजन संभाल ।
गाफिल नींद न कीजिये, आइ पहुंचा काल ॥ 
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com
ऐसी दशा है मनुष्य की, कि उसे पता भी नहीँ कि उसकी जड़ें टूट गई हैं। उसे पता भी नहीँ कि परमात्मा से उसका संबंध विच्छिन्न हो गया है। उसे पता नहीं कि जीवन के स्त्रोत से उसकी सरिता अलग हो गई है।
जल्दी ही सब सूख जाएगा।
लेकिन अभी सूखने मे देर है, और जब तक पूरा ही न सूख जाए; तब तक तर्क से मनुष्य को समझाने का कोई उपाय नहीं है।
एक-2 शब्द पर ध्यान दें। किसी ने वृक्ष को काट गिराया है। वृक्ष कट गया है, लेकिन अभी हरा है। अभी भी फूल खिले हैं, मुरझाने मे समय लगेगा। वृक्ष को पता नहीं कि जड़ों से संबंध टूट गया है, उसे पता नहीं कि अब जमीन से कोई नाता न रहा। कोई उपाय भी नहीं है समझाने का। और जब समझाने का उपाय होगा तब समझाने का कोई अर्थ न रह जाएगा। तब वृक्ष सुख जाएगा और सूख गया तो करने को बचा ही क्या?
मनुष्य तभी समझ पाता है,जब करने का समय नहीं रह जाता। अक्सर लोग मृत्यु के समय समझ पाते हैं कि जीवन व्यर्थ गया। इसके पहले उन्हे समझाने का समस्त प्रयास निष्फल ही जाता है। क्योँकि मनुष्य क्षुद्र में ही सार देखता है।
और मनुष्य को भरोसा नहीं आता कि जल्दी ही मृत्यु आने वाली है। क्योँकि बुद्धि कहे जाती है कि दूसरे मरते हैं

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