रविवार, 9 अक्तूबर 2016

= सर्वंगयोगप्रदीपिका (च.उ. २३-२४) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
.
*सर्वांगयोगप्रदीपिका(ग्रंथ२)*
**ज्ञानयोग नामक = चतुर्थ उपदेश =**
 
.
*= पाषाण-प्रतिमा का उदाहरण =*
*ज्यौं प्रतिमा पाहन मैं दीसै ।*
*दूजी बस्तु न बिश्वा बीसै ।*
*यौं आतमा बिश्व नहिं न्यारा ।*
*ज्ञानयोग का इहै बिचारा ॥२३॥*
जैसे पत्थर(पाषाण) में प्रतिमा अलग दिखायी देती हैं पर वह वस्तुतः पत्थर ही तो है; इसी तरह यह विश्व आत्मा से भिन्न नहीं है - यह बात साधक द्वारा ज्ञानयोग के विवेक में एक दिन हस्तामलकवत् प्रत्यक्ष(अनुभव से साक्षात्कार) की जा सकती है ॥२३॥
.
*= दोहा =*
*ज्ञानयोग सो जानि है, 
जाको अनुभव होई ।*
*कहैं सुनैं कहा होत है, 
जब लग भासत दोइ ॥२४॥*
इस ज्ञानयोग को वही साधक ठीक ढंग से जान-समझ पायगा जो ब्रह्म के साक्षात्कार तक पहुँच चुका हो । जब तक पामर लोग द्वैतप्रपंच में फँसे हुए हैं, तब तक कोरी मनगढ़न्त बातें करने भर किसी योगी को क्या सिद्धि मिलने वाली है ! ॥२४॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें