#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
**श्री दादू चरितामृत(भाग-२)** लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
**= विन्दु ८६ =**
**= अवधूत का भूल स्वीकार करना =**
उक्त पद सुनकर अवधूत ने कहा - आप का कथन यथार्थ है । संतों के पास ऐसी बातें नहीं करनी चाहिये किंतु मेरी भूल हो गई है । उसके लिये मैं आप से क्षमा याचना करता हूँ । आप तो क्षमा को ही सार मानने वाले संत हैं, अवश्य ही क्षमा करेंगे । फिर अवधूत प्रणाम करके चले गए ।
**= शारण वैश्य के जाना =**
डीडवाने में रोढू ग्राम का शारण वैश्य दादूजी के पास आया और प्रणामादि शिष्टाचार के पश्चात् अवकाश देख के दादूजी से प्रार्थना की - स्वामिन् ! मेरे ग्राम पधारने की कृपा अवश्य करें । आपके पधारने से अनेकों का कल्याण होगा । जैसे यहाँ के लोगों ने आपके दर्शन, सत्संग से लाभ उठाया है, वैसे ही मेरे ग्राम के लोग भी लाभ उठायें ऐसी मेरी अभिलाषा है और आप तो लोक कल्याण के लिए ही भूमंडल में विचरते हैं, आपका कोई स्वार्थ तो है ही नहीं । अतः आप मेरी यह प्रार्थना अवश्य स्वीकार करें । दादूजी ने उसकी शुद्ध श्रद्धा देखकर स्वीकार कर लिया फिर डीडवाना से उसके साथ गये । उसने सब संतों को ग्राम के बाहर ठहराया और स्वयं ग्राम में जाकर बढ़े ठाठ - बाट से भक्त मंडल के साथ संकीर्तन करते हुये दादूजी को लेने आया । फिर प्रणामादि करके अति सत्कार पूर्वक संकीर्तन करते हुए दादूजी को ग्राम में ले गये । एक अच्छे एकान्त-स्थान में ठहराया और संत - सेवा की बहुत अच्छी प्रकार से व्यवस्था कर दी । सत्संग होने लगा, आसपास के लोग सरसंग में आने लगे और अपनी श्रद्धानुसार लाभ लेने लगे । एक दिन शारण वैश्य दादूजी के सामने बैठा हुआ था किन्तु उसका मन भगवान् में न लगकर किसी धन संबन्धी विचार में लग रहा था । उसके मन की यह स्थित देखकर परम कृपालु संत प्रवर दादूजी ने उसे सचेत करने के लिये यह पद बोला....
(क्रमशः)
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