सोमवार, 3 अक्तूबर 2016

= सर्वंगयोगप्रदीपिका (च.उ. १७-१८) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*सर्वांगयोगप्रदीपिका(ग्रंथ२)*
**सांख्ययोग नामक = चतुर्थ उपदेश =**
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*= दीपक का उदाहरण =*
*ज्यौं पावक तैं दीसत न्यारा ।*
*दीप मसाल जु बिबिध प्रकारा ।*
*ताही मांझ होइ सो लीनां ।*
*यौं आतमा बिश्व लै चीन्हां ॥१७॥*
जैसे दीपक, मशाल आदि अग्नि के विकार एक समय उदय होकर फिर से अग्नि में ही मिल जाते हैं, वही हाल इस सृष्टि और आत्मा का समझना चाहिए ॥१७॥
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*= फेन-बुदबुद का उदाहरण =*
*जैसैं उपजै जलकै संगा ।*
*फेन बुदबुदा और तरंगा ।*
*ताही मांझ लीन सो होई ।*
*यौं आतमा बिश्व है सोई ॥१८॥*
जैसे, झाग, बुलबुले, तरंग पानी से पैदा होकर पानी में ही समा जाते हैं ऐसे ही यह सारा विश्व एक दिन पुनः ब्रह्म में लीन हो जाता है ॥१८॥
(क्रमशः)

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