सोमवार, 3 अक्तूबर 2016

=२५=

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
आगे पीछे संग रहै, आप उठाये भार । 
साधु दुखी तब हरि दुखी, ऐसा सिरजनहार ॥
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साभार ~ Anand Nareliya 
A lovely story on krishna 
कृष्ण वैकुंठ में भोजन करने बैठे हैं। और बीच में उठ गये हाथ का कौर छोड्कर उठ गये, भागे द्वार की तरफ। रुक्मिणी ने कहा—कहां जाते हैं आप? उत्तर भी नहीं दिया, इतनी जल्दबाजी दिखायी जैसे घर में आग लग गयी हो। और दरवाजे पर ठिठक गये, एक क्षण रुके, वापिस लौटकर थाली पर बैठकर भोजन करने लगे। रुक्मिणी ने कहा, तुमने मुझे और उलझा दिया। ऐसे भागे जैसे घर में आग लग गयी हो। मैं पूछी थी कि कहां जाते हो तो जवाब न दिया। फिर गये भी कहीं नहीं, द्वार से ही ठिठके लौट आए। 
कृष्ण ने कहा—ऐसा हुआ, मेरा एक भक्त जमीन पर एक गाव में से गुजर रहा है। लोग उसे पत्थर मार रहे हैं, उसके सिर से खून बह रहा है। लेकिन वह मस्त अपना एकतारा बजा रहा है और मेरी धुन गा रहा है। उसे पता नहीं है कि क्या हो रहा है? लोग पत्थर मार रहे हैं, लोग गालिया दे रहे हैं, लोग उसे अपमानित कर रहे हैं, और उसे कुछ पता नहीं है, वह अपनी मस्ती में है, उसका एकतारा बज ही रहा है। उसका गीत टूटा ही नहीं। उसकी कड़ी खंडित नहीं हुई। उसका भाव अहर्निश मेरी तरफ बह रहा है। इसलिए भागा था, मेरी जरूरत थी। इतना जो असहाय हो, तो मुझे भागना ही पड़े! इसलिए तेरे प्रश्न का उत्तर न दे सका, क्षमा करना। 
रुक्मिणी ने कहा, फिर लौट कैसे आए? कृष्ण ने कहा, लौटना इसलिए पड़ा कि जब तक मैं दरवाजे तक पहुंचा तब तक उसने वीणा तो एक तरफ पटक दी, उसने खुद ही पत्थर उठा लिये हैं। अब यह खुद जवाब दे रहा है। अब मेरी कोई जरूरत न रही! तुम जब तक अपनी खबर खुद ले रहे हो, तब तक परमात्मा तुम्हारी खबर ले इसकी कोई जरूरत भी नहीं है। तुम जब परिपूर्ण असहाय अवस्था में पहुंच जाओगे, जब तुम कहोगे कि अब असमर्थ हूं जब तुम्हारा अपने ऊपर जरा भी निर्भर रहने का भाव न रह जाएगा, जब तुम एक छोटे बच्चे की भांति रोओगे, जिसकी मां खो गयी है और तुम्हें कुछ भी न सूझेगा सिवाय रुदन के, कुछ भी न सूझेगा सिवाय पुकारने के, उसी क्षण खबर ली जाती है।....osho

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