卐 सत्यराम सा 卐
**श्री दादू अनुभव वाणी** टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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**= अथ जरणा का अँग ५ =**
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प्राप्त वस्तु को पचाने का नाम "जरणा" है । साक्षात्कार का अनुभव पचना चाहिए, यह प्रसंग आने पर जरणा का अँग कहने में प्रवृत्त हुये मँगल कर रहे हैं -
दादू नमो नमो निरँजनँ, नमस्कार गुरुदेवत: ।
वन्दनँ सर्व साधवा, प्रणामँ पारँगत: ॥ १ ॥
जिनकी कृपा से साधक जरणा युक्त हो सँसार से पार जाकर परब्रह्म को प्राप्त होते हैं, उन निरंजन राम, सद्गुरु और सर्व सँतों को हम प्रणाम करते हैं ।
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को साधू राखे राम धन, गुरु बाइक१ वचन विचार ।
गहिला दादू क्यों रहे, मरकत हाथ गंवार ॥ २ ॥
२ में जरणा का अधिकारी बता रहे हैं - कोई विरला साधु पुरुष ईश्वर दूत - गुरु वचनों१ के विचार से प्राप्त राम - भजन - धन को सँचय करके गुप्त रूप से रख सकता है । जैसे मूर्ख के हाथ में मरकत - मणि आने पर भी वह उसे नहीं रख सकता, अल्प मूल्य में ही बेच देता है, वैसे ही बुद्धिहीन व्यक्ति राम - भजन - धन को सिद्धि तथा प्रतिष्ठा - रूप अल्प - मूल्य में ही खो देता है, पचाकर मुक्ति रूप महान् मूल्य प्राप्त नहीं कर सकता ।
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दादू मन ही माँहीँ समझ कर, मन ही माँहि समाइ ।
मन ही माँहीं राखिये, बाहर कह न जनाइ ॥ ३ ॥
३ - ६ में जरणा करने की प्रेरणा कर रहे हैं - साधको ! विचार पूर्वक भगवत् तत्व को मन में ही समझ कर मनोनिग्रह द्वारा बुद्धि - वृत्ति को उसमें ही लीन करो और उससे होने वाले अनुभव को भी मन में ही रक्खो, वाणी द्वारा मन से बाहर निकाल कर अनधिकारियों को मत कहो ।
(क्रमशः)
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