🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*(ग्रन्थ ३) पंचेन्द्रियचरित्र*
*= पतंगचरित्र(४) = पतंगरूपक =*
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*यह दृष्टि हि महल उठावै ।*
*यह दृष्टि हि ठौर बनावै ।*
*यह दृष्टि हि बस्त्र सु पेखै ।*
*यह दृष्टि आरसी देखै ॥१९॥*
यह नजर का ही करिश्मा है कि किसी ऊँचे-ऊँचे महल खड़े करवा देती है, किसी को बड़ी से बड़ी भूसम्पति का मालिक बना देती है । किसी को अच्छे से अच्छा वस्त्र पहनवा देती है । और कोई इस नजर के सहारे अपने चहरे को शीशे में देख-देख कर ऐंठता-अकड़ता रहता रहता है ॥१९॥
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*यह सकल दृष्टि की बाजी ।*
*सब भूले पंडित काजी ।*
*यह दृष्टि कठिन हम जाना ।*
*देवासुर दृष्टि भुलाना ॥२०॥*
यों कहिये कि एक तरह से यह सारा संसार सब कुछ नजर का ही खेल है । बड़े-बड़े विद्वान तथा न्यायपरायण लोग भी इसके बहकावे में आ गये । यह नजर का फेर ऐसा प्रबल है कि इसके चक्कर में बड़े-बड़े देवता और राक्षस भी अपना भी अपना सफाया कर बैठै ॥२०॥
(क्रमशः)
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